Sunday, 2 February 2014

गरीब सदियों से सबके वोट बैंक ही रहे

- कांग्रेस और  भाजपा को नहीं इनसे सहानुभूति
देश में गरीब हमेशा से एक एेसा तबका रहा है। जिसका हर कालखंड में शोषण ही हुआ है। इन्हें पहले जातिवाद के नाम पर मूल अधिकारों से वंचित रखा गया था। जब इसका असर कम हुआ तो धर्म के नाम पर प्रताड़ना दी गई। समय के साथ उत्पीड़न के तरीके बदलते रहे। कुछ ने जब इसका विरोध किया तो उन्हें कुचला भी किसी न किसी बहाने से गया। हालांकि वे जानते थे और सब समझते थे। परन्तु उनके सामने विकल्प नहीं होता था। इसलिए सच्चाई जानते हुए भी अत्याचार को चुपचाप सह लेते थे। समय का इंतजार करते थे कि समय बदलेगा। लेकिन कभी समय नहीं बदला। हर बार शोषित ने जरूर तरीका बदल दिया। ताकि उनके मन में उठ रहे विद्रोह के ज्वालामुखी की दिशा को बदल दिया जाए।
प्रजातंत्र के नाम पिछले ६९ साल से लगातार यह छलावा जारी है। जब भी विरोध के स्वर तेज होते हैं एक नया तरीका ईजाद कर दिया जाता है। केंद्र सरकार ने गांव में २६ रुपए और शहरों में ३२ रुपए रोज कमाने वाले को गरीब नहीं मानती है। यह आकंड़ा जब जारी किया गया था। सारे देश में कांग्रेस की फजीहत हुई। परन्तु कोई भी दल बयानों से आगे नहीं बढ़ा था। अब गुजरात ने ११ रुपए और शहरों में १७ रुपए कमाने वाले को गरीब मानने से इनकार कर दिया। यह आंकड़ा भी शनिवार यानि १ फरवरी को सामने आया है। आदेश १६ दिसंबर २०१३ को गुजरात सरकार ने निकाला था। इस बार भी उसी तरह के अलाप राजनेताओं ने लगाए। कोई भी इससे आगे नहीं बढ़ा है। चायवाला भी गरीब ही होता है। गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी और भाजपा अध्यक्ष चायवाले से जुड़ने का दावा करते हैं। फिर भी गुजरात में एेसे आकड़े जारी करते समय शर्म नहीं आई।
बेशर्मी से सरकारी अधिकारी तर्क भी दे गए। योजना आयोग पैमाना नहीं बदल रही है। फिर गरीबों का हित करने का दावा दोनों ही दल किस आधार पर करते हैं। वोट मांगने में भी इन्हें शर्म नहीं आती है। भाजाप घोषित रूप से व्यापारी पार्टी है और कांग्रेस दलालों की मसीहा है। गरीब जानता है कि ये कभी उनके लिए कुछ नहीं करेंगे। वह अपनी नियति से समझौता कर चुका है। यही उसकी सबसे बड़ी कमजोरी भी है। तमाम बुद्धिजीवी भी कभी इनके हित में इस तरह से लामबंद नहीं हुए है। जिससे सरकार या इन पार्टियों को कुछ करने के लिए मजबूर होना पड़े।
राजेश रावत
२ फरवरी २०१४
भोपाल