वैसे तो बजट से राहत की कम और टैक्स की ज्यादा उम्मीद होती है। कांग्रेस के शासन में बजट का यही अर्थ आम लोगों को समझ आया था। आम आदमी भारी-भरकम आंकड़ों को नहीं समझ पाता है। वह केवल यह जानना चाहता है कि महंगाई की तपिश से झुलसे उसके घर कुछ राहत की बारिश होगी या नहीं। गुरुवार को वह सावन की फुहार की तरह ठंडक महसूस करना चाहता है। अभी भी मोदी से उसे किसी करिश्मे की उम्मीद है।
वित्त मंत्री अरुण जेटली ने भी रेल मंत्री सदानंद गौड़ा की तरह ही कड़वी दवा पीने की सलाह दी तो वह आम आदमी खुद को ठगा महसूस करेगा। केवल योजना का पिटारा से उसके घर में दाल -रोटी नहीं आने वाली है। रेल बजट से शहरी और कस्बों में रहने वाले निराश हो चुके हैं। किसान मौसम की बेरुखी से परेशान है। अब बारी नौकरीपेशा लोगों की है। उन्हें बजट से आस है। बजट ने राहत नहीं बरसाई तो यूपीए और भाजपा सरकार के कार्यकाल में फर्क करना का मुश्किल हो जाएगा। व्यापारी भी अभी ज्यादा खुश नहीं है। बस उसे केवल इतनी भरोसा है कि कुछ अच्छा हो सकता है। पर भरोसा होता ही टूटने के लिए है। कम तक टूटता है यह समय के साथ स्पष्ट होगा।
बुधवार को देश भर के टीवी चैनल और विपक्ष के नेता भाजपा अध्यक्ष की नियुक्त की चर्चा में लीन रहे। बजट की पूर्व संध्या को भाजपा ने पूरी तरह से भटका दिया। यह उसकी सोची-समझी रणनीति का हिस्सा है। चुनाव के पूर्व भी वह ऐसी ही रणनीति से देश के लोगों को भटका चुकी है। लेकिन छलावा काम नहीं आएगा।
सरकार को रणनीति का सहारा छोड़कर ठोस काम करके बताना होगा। वर्ना वास्तविकता के कठोर धरातल पर काल्पनिक रणनीतियां दम तोड़ देंगी। यह उसी तरह से होगा। जैसे रात के गहन अंधकार में बंद पलकों के नीचे आने वाले मीठे सपने मन को बड़े लुभाते है। पलक झपकाते ही वे अनंत गहराइयों में इस तरह से लीन हो जाते हैं कि कभी थे ही नहीं। देखने वाला उनकी स्मृतियों को अवचेतन में सहेजे हुए रेगिस्तान के मुसाफिर की तरह भटकता रहता है। उसे कभी पानी नहीं मिल पाता है।
यानी की भाजपा के रणनीतिकारों ने इस बजट में कांग्रेस के सिर पर महंगाई का मटका फोड़ना छोड़ना होगा। क्योंकि महंगाई से परेशान होकर ही उन्होंने मोदी का दामन थामा था। अब तक यह भी साफ हो गया है कि देश का खजाना खाली नहीं है। विदेशी मुद्रा भंड़ार भी बढ़ा ही है। अब सत्ता मिलते ही अगर मोदी सरकार भी यही राग अलापने लगेगी तो उनका आक्रोश बढ़ जाएगा। अच्छे दिन की भूल भुलैया में उलझने वाला नहीं है।
रेल बजट से जहां उसका भरोसे तड़का था। अब उसकी दरार बढ़ जाएगी। जिसे खाई में तब्दील होते देखना वे भी नहीं चाहेंगे। आम लोग महंगाई से परेशान हैं। वे तो केवल इतना चाहते हैं कि उन्हें राहत मिले। अध्यक्ष कोई बने। बजट कुछ भी आए। गड़बड़ाते घर के बजट को सुधारने के उपाय देखना चाहते हैं।