Wednesday, 6 February 2019

सत्ता ही बन गई है विचारधारा,

देश में चुनाव नजदीक है। इसका अहसास धीरे -धीरे आम लोगों को होने लगा है। बयानों में तल्खी, राजनेताओं में एक दूसरे को कमतर बताने की कोशिश। आरोप और प्रत्यारोप के जरिए एक दूसरे की छवि को धूमिल करने के हरसंभव प्रयास। यानी मेरी कमीज उजली और दूसरे की दागदार। हालात अभी ओर बदतर हो वने की आशंका जताई जा रही है। कारण साफ है। राजनेता वोटर को भ्र्मित करने की जुगत में लगा है। हाल ही में पश्चिम बंगाल की ममता सरकार और केंद्र की सीबीआई के बीच जो हुआ। सत्ता कब्जाने के लिए होने वाले युद्ध की तरह का मामला है। ममता बनर्जी ने देश के सामने यह दिखाने का प्रयास किया कि सीबीआई उनकी सत्ता हथियाने की कोशिश कर रही है। उनके सेनापति को बंधक बनाने के लिए केंद्र की मोदी सरकार के इशारे पर सारा तामझाम रचा गया है। वहीं सीबीआई भी पीछे नहीं हटी। वह एक पुलिस कमिश्नर को गिरफ्तार करने के लिए 40 अधिकारियों को फौज लेकर पहुंच गई थी। ममता औऱ मोदी सैनिकों के कंधे पर बंदूक रखते हुए लड़ाई लड़ते -लड़ते कम सामने आ गए। उन्हें ही नहीं पता चला। जब ममता को लगा कि मामला सार्वजनिक हो गया तो वे सत्याग्रह के नाम पर बैठ गई। मोदी सरकार भी कोर्ट के बहाने दुबक गई। ताकि जनता को कहीं दोनों के बीच चल रही राजनीतिक जंग की असली हकीकत का पता न चल जाए। हालांकि उसे पता है सत्ता की चाबी जो उसके हाथ में है उसे हथियाने के हथकंड़ों का यह अभी पहल ही है। कोर्ट के बहाने दोनों ही सरकारें पीछे हटीं और सीमा पर आकर रुक गईं। मोदी सरकार ने जिस तरह का रवैया दिल्ली की केजरीवाल सरकार के साथ अपनाया था। वहीं तरीका ममता सरकार के साथ इस्तेमाल करने की कोशिश में थी। परन्तु ममता बनर्जी भी पुरानी राजनेता हैं। वे मोदी सरकार की तिकड़म समझ गई और तत्काल ही फ्रंट पर आ गई। जब कोर्ट में मामला पहुंचा तो बैकफुट पर आई और श्रेय लेते हुए। वापस अपनी सीमा में लौट गई। इस सबमें देश के लोकतंत्र का जो नुकसान हुआ है। उसका बिगड़ा रूप आपको आने वाले सालों में नजर आने वाला है। कांग्रेस ने सत्ता में रहते हुए अनेक बार सीबीआई का दुरुपयोग किया। अब भाजपा भी वही कर रही है। कल जो नई सरकार होगी, वह भी यही करेगी। लेकिन जब समस्या खड़ी हो गई है तो समाधान में भी सामने आएगा। इसलिए राजनीतिक दलों को चुनाव तक मर्यादा में रहते हुए काम करना होगा। वे सत्ता हासिल करने के लिए कुछ भी करने को तैयार है। उनकी विचारधारा से जो मेल नहीं खाता। उसे नेस्तानाबूत करने में जुटने में कोई बुराई नहीं देखते हैं। जबकि लोकतंत्र में सबकों अपनी विचारधारा फैलाने और काम करने का अधिकार है।