अन्ना ने की एतिहासिक भूल
राजेश रावत भोपाल (18 दिसबंर 2013)
18 दिसबंर 2013 को लोकसभा ने लोकपाल बिल पास कर दिया। अन्ना हजारे ने अपना अनशन भी तोड़ दिया। केजरीवाल और उनके साथियों ने इसे काला दिन बताया। लेकिन इसके बीच अन्ना के उस बयान ने सभी को चौकाया था।जिसमें अन्ना ने कहा कि इस सरकारी लोकपाल बिल से केवल 40 से 50 फीसदी ही भ्रष्टाचार ही मिट पाएगा। इसे अन्ना की ईमानदारी या मजबूरी कह सकते हैं। जो उन्होंने लोगों के सामने जताई।
आधा भ्रष्टाचार को मिटाने वाले बिल का समर्थन करना क्या अन्ना की मजबूरी थी । फिर इतने हंगामे की क्या जरूरत थी। देश के लोगों को अन्ना से जो आशा थी वह उनके बयान के साथ ही मिट गई। साथ ही जिस बात को अरविंद केजरीवाल और उनकी टीम के साथी बार-बार दोहरा रहे थे। वह भी सही साबित हो गई कि सरकारी बिल कमजोर है। देश के लोग भी समझ गए कि आधा भ्रष्टाचार ही मिटाने वाला बिल का समर्थन भाजपा ने करते हुए कांग्रेस का साथ दिया। राज्यसभा में भी 17 दिसबंर 2013 को बिल का पास कर दिया था।
अब सवाल उठता है कि जो लोगों की भावनाओं के साथ अन्ना ने यह खिलवाड़ क्यों किया। अगर अन्ना इस बिल का समर्थन नहीं करते तो तय था कि कांग्रेस को पूरा भ्रष्टाचार मिटाने वाला बिल पेश करना पड़ता लेकिन अन्ना एक नया इतिहास बनाने से चूक गए।
शायद उन्हें किरण बेदी और अन्य लोग यह समझाने में कामयाब हो गए कि उनके नाम पर अरविंद केजरीवाल की राजनीित चमक रही है। अगर अरविंद को रोकना है तो बिल का मामला ही खत्म कर दो। कांग्रेस और भाजपा भी यही चाह रहे थे। लेकिन अन्ना जितना इतिहास बनाने से चूके उतने ही वे लोगों के भरोसे को जीतने से भी चूक गए हैं।
भले ही लोग उनकी नीयत पर शक न करें। लेकिन इतना तय है कि वे यह मानने लगे हैं कि अन्ना कमजोर पड़े हैं। राजनेताओं के आगे झुक गए हैं। जीवन भर के ईमानदारी और सत्य की लड़ाई को अन्ना राजनीतिक चालों के सामने आधे परास्त हो। राहुल गांधी को बधाई का पत्र लिखने की वे कितनी भी सफाई दें। उनके दामन पर लगा आधा काला धब्बा उनके हर आंदोलन में देखने को मिलेगा। अब लोग उनके साथ उस शिद्दत से नहीं जुड़ेंगे।
यह अन्ना की आधी हार से ज्यादा आम आदमी की आधी हार है। इसके दूरगामी परिणाम होंगे। अब लोग एकदम से किसी भी जन आंदोलन में शामिल होने से पहले हजार बार सौंपेंगे। अन्ना जो भी सोचकर सरकारी लोकपाल का समर्थन किया हो। लेकिन तय है कि उन्होंने भारत की राजनेताओं के सामने हार मानी है। जिसे आने वाले समय में उनकी सबसे बड़ी भूल माना जाएगा।
राजेश रावत भोपाल (18 दिसबंर 2013)
18 दिसबंर 2013 को लोकसभा ने लोकपाल बिल पास कर दिया। अन्ना हजारे ने अपना अनशन भी तोड़ दिया। केजरीवाल और उनके साथियों ने इसे काला दिन बताया। लेकिन इसके बीच अन्ना के उस बयान ने सभी को चौकाया था।जिसमें अन्ना ने कहा कि इस सरकारी लोकपाल बिल से केवल 40 से 50 फीसदी ही भ्रष्टाचार ही मिट पाएगा। इसे अन्ना की ईमानदारी या मजबूरी कह सकते हैं। जो उन्होंने लोगों के सामने जताई।
आधा भ्रष्टाचार को मिटाने वाले बिल का समर्थन करना क्या अन्ना की मजबूरी थी । फिर इतने हंगामे की क्या जरूरत थी। देश के लोगों को अन्ना से जो आशा थी वह उनके बयान के साथ ही मिट गई। साथ ही जिस बात को अरविंद केजरीवाल और उनकी टीम के साथी बार-बार दोहरा रहे थे। वह भी सही साबित हो गई कि सरकारी बिल कमजोर है। देश के लोग भी समझ गए कि आधा भ्रष्टाचार ही मिटाने वाला बिल का समर्थन भाजपा ने करते हुए कांग्रेस का साथ दिया। राज्यसभा में भी 17 दिसबंर 2013 को बिल का पास कर दिया था।
अब सवाल उठता है कि जो लोगों की भावनाओं के साथ अन्ना ने यह खिलवाड़ क्यों किया। अगर अन्ना इस बिल का समर्थन नहीं करते तो तय था कि कांग्रेस को पूरा भ्रष्टाचार मिटाने वाला बिल पेश करना पड़ता लेकिन अन्ना एक नया इतिहास बनाने से चूक गए।
शायद उन्हें किरण बेदी और अन्य लोग यह समझाने में कामयाब हो गए कि उनके नाम पर अरविंद केजरीवाल की राजनीित चमक रही है। अगर अरविंद को रोकना है तो बिल का मामला ही खत्म कर दो। कांग्रेस और भाजपा भी यही चाह रहे थे। लेकिन अन्ना जितना इतिहास बनाने से चूके उतने ही वे लोगों के भरोसे को जीतने से भी चूक गए हैं।
भले ही लोग उनकी नीयत पर शक न करें। लेकिन इतना तय है कि वे यह मानने लगे हैं कि अन्ना कमजोर पड़े हैं। राजनेताओं के आगे झुक गए हैं। जीवन भर के ईमानदारी और सत्य की लड़ाई को अन्ना राजनीतिक चालों के सामने आधे परास्त हो। राहुल गांधी को बधाई का पत्र लिखने की वे कितनी भी सफाई दें। उनके दामन पर लगा आधा काला धब्बा उनके हर आंदोलन में देखने को मिलेगा। अब लोग उनके साथ उस शिद्दत से नहीं जुड़ेंगे।
यह अन्ना की आधी हार से ज्यादा आम आदमी की आधी हार है। इसके दूरगामी परिणाम होंगे। अब लोग एकदम से किसी भी जन आंदोलन में शामिल होने से पहले हजार बार सौंपेंगे। अन्ना जो भी सोचकर सरकारी लोकपाल का समर्थन किया हो। लेकिन तय है कि उन्होंने भारत की राजनेताओं के सामने हार मानी है। जिसे आने वाले समय में उनकी सबसे बड़ी भूल माना जाएगा।
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