महाराष्ट्र में भाजपा की जीत का मतलब
महाराष्ट्र में भाजपा का विधानसभा चुनाव में सफल होना एक शुभ संकेत है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एक करिश्मा किया है। जिसका देश का हर सेकुलर कायल हुआ है। इसके अनेक कारण है। पहला और सबसे बड़ा कारण है महाराष्ट्र से जातिवाद और क्षेत्रवाद की राजनीति के खात्मे की शुरुआत। आमची मुंबई नारे को पूरे महाराष्ट्र के लोगों ने एक सिरे से नकार दिया है। इसका मतलब यह नहीं है कि वह मराठी या महाराष्ट्रीय होने से गुरेज कर रहे हैं। बल्कि वे हिंदुस्तानी होने का प्राथमिकता दे रहे हैं। बाकी देश की तरह ही शांति और सदभाव से रहना चाहते हैं।
शिवसेना औऱ मनसे को झटका ः पिछले पांच साल में महाराष्ट्र में मनसे और शिवसेना जिस तरह से क्षेत्रवाद के नाम पर जहर उगला और लोगों का जीना मुहाल कर दिया। उत्तर भारतीयों पर जो हमले किए। उससे उनका कितना नुकसान हुआ यह तो वे ही जाने आम मराठी का जरूर नुकसान हुआ। जो क्षेत्रवाद, भाषावाद के नाम पर राजनीति करने वाले नहीं देख पाए थे। आम मराठी लोगों को लाठियों से पिटते हुए नहीं देख पाए।
जितनी पीड़ा मनसे, शिवसेना के कार्यकर्ताओं की पिटाई से उत्तर भारतीयों को हुई। उतनी ही पीड़ा आम मराठी भी महसूस कर रहा था। वह खुलकर भले ही नहीं बोल रहा था। पर सहभागी जरूर था। उसे मौका मोदी के रूप में मिला। उसने क्षेत्रवाद की राजनीति को सिरे से खारिज कर दिया। राज ठाकरे इस सदमे से उबर ही नहीं पा रहे हैं।
महाराष्ट्र में भाजपा का विधानसभा चुनाव में सफल होना एक शुभ संकेत है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एक करिश्मा किया है। जिसका देश का हर सेकुलर कायल हुआ है। इसके अनेक कारण है। पहला और सबसे बड़ा कारण है महाराष्ट्र से जातिवाद और क्षेत्रवाद की राजनीति के खात्मे की शुरुआत। आमची मुंबई नारे को पूरे महाराष्ट्र के लोगों ने एक सिरे से नकार दिया है। इसका मतलब यह नहीं है कि वह मराठी या महाराष्ट्रीय होने से गुरेज कर रहे हैं। बल्कि वे हिंदुस्तानी होने का प्राथमिकता दे रहे हैं। बाकी देश की तरह ही शांति और सदभाव से रहना चाहते हैं।
शिवसेना औऱ मनसे को झटका ः पिछले पांच साल में महाराष्ट्र में मनसे और शिवसेना जिस तरह से क्षेत्रवाद के नाम पर जहर उगला और लोगों का जीना मुहाल कर दिया। उत्तर भारतीयों पर जो हमले किए। उससे उनका कितना नुकसान हुआ यह तो वे ही जाने आम मराठी का जरूर नुकसान हुआ। जो क्षेत्रवाद, भाषावाद के नाम पर राजनीति करने वाले नहीं देख पाए थे। आम मराठी लोगों को लाठियों से पिटते हुए नहीं देख पाए।
जितनी पीड़ा मनसे, शिवसेना के कार्यकर्ताओं की पिटाई से उत्तर भारतीयों को हुई। उतनी ही पीड़ा आम मराठी भी महसूस कर रहा था। वह खुलकर भले ही नहीं बोल रहा था। पर सहभागी जरूर था। उसे मौका मोदी के रूप में मिला। उसने क्षेत्रवाद की राजनीति को सिरे से खारिज कर दिया। राज ठाकरे इस सदमे से उबर ही नहीं पा रहे हैं।
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