Sunday, 30 August 2015

पहली बार मोदी जी ने मानी जनता के मन की बात


-सही समय पर लिया प्रधानमंत्री ने ‘मन की बात कार्यक्रम’ सही फैसला

-इसे हार-जीत के तराजू पर नहीं देखा जाना चाहिए
राजेश रावत (30 अगस्त 2015 भोपाल )
देश में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एक फिर मान की बात रविवार को करते हुए भूमि अधिग्रहण पर वादा किया कि चौथी बार अध्यादेश नहीं लाया जाएगा।  11वीं बार मन की बात कार्यक्रम में पहली बार उन्होंने देश के किसानों की मन की बात को माना है। यह फैसला मोदी सरकार का सही फैसला है। इस घोषणा पर कांग्रेस सरकार की हार बता रही है। जबकि देश के किसानों से जुड़े मामले को लेकर हार-जीत के तराजू पर नहीं तौला जाना चाहिए। सरकार ने सही समय पर सही फैसला लिया। इसकी तारीफ की जानी चाहिए।
अगर जनता से जुड़़े फैसले पर सरकार बैकफुट पर जाती है तो यह उसकी कमजोरी नहीं है। जबकि उसकी सह्रदयता या लोगों की भावना को समझते हुए फैसला लिया जाना है। पहली की सरकारों में इसकी कमी थी। मोदी के सरकार में आने के बाद यह बदलाव सरकार के कामकाज में 15 महीने बाद देखने में आया है। असल में इसी तरह की एप्रोच की जरूरत है। सरकार के कामकाज में। ताकि जनता की समस्याओं को सही तरह से हल किया जा सके। आने वाले समय में भी सरकार और उसके तमाम अधिकारी अगर इस तरह से जनता से जुड़ी समस्याओं को दूर करने में हार जीत या किसी राजनीति के चश्मे से देखने की बजाए केवल समस्या के निराकरण की दिशा में काम करते हुए फैसला लेती है तो लोगों के सरकार में भरोसा बढ़ेगा।

यह मोदी सरकार के लिए अहम पड़ाव है। क्योंकि 15लाख खाते में आने के जुमले के बाद लोगों का भरोसा सरकार पर नहीं रहा। बढ़ती महंगाई और प्याज की बढ़ती कीमतों  से लोगों की सरकार से नाराजगी बढञती जा रही है। देश के लोग जनाते हैं कि अनेक समस्याएं हैं। इन्हें धीरे -धीरे ही दूर किया जा सकता है। इसके लिए वे तैयार भी है। लेकिन सरकार कोे भी खुले में मन से लोगों के सामने आना पड़ेगा। न सिर्फ उसे काम करके दिखाना होगा बल्कि तेजी से करना होगा। जिससे भरोसे में आई दरार भर सके। गंभीरता और सावधानी की जरूरत है।
जरा चूक दरार को खाई के रूप में बदल सकती है और छोटी से छोटी तब्दीलियां उसके भरोसे को बढ़ा सकती है। हालांकि यह कहने में गुरेज नहीं है कि लोगों का भरोसा जीतना प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के लिए जीतना आसान है। वे उनसे आशा लगाकर बैठे हैं। जरा सी पहल पर उनका गुस्सा काफूर हो जाएगा। लेकिन अगर उन्होंने नाराजगी का ध्यान नहीं रखा तो तय है कि गुस्सा आक्रोश में बदल जाएगा। जिसे वे तमाम कोशिशों के बाद भी कम नहीं कर पाएंगे।

इसका उदाहरण गुजरात के पटेल-पाटीदार आंदोलन को माना जा सकता है। जहां मोदी में कई सालों तक सत्ता में रहे। परन्तु उनकी समस्याओं को नजर अंदाज करते रहे। आज देश में ऐसा विस्फोट हुआ है कि गुजरात मॉडल के तमाम दावों की धज्जियां उड़ा दी गई। वैसे भी गुजरात सदियों से ही संपन्न रहा है। इसका कारण है समुद्रतट से लगे हुए देश और दुनिया के सभी शहर हमेशा से संपन्नता के गवाह रहे हैं। क्योंकि इन इलाकों में व्यवसाय और बिजनेस अपनी गति से होता रहता है। जबकि बाकी शहरों में इस तरह की प्रगति नहीं हो पाती है।

Sunday, 23 August 2015

पाकिस्तान से वार्ता विफल : न तुम हारे न हम जीते

  • राजेश रावत भोपाल
23 अगस्त 2015 (इमेज 23 अगस्त का
 दैनिक भास्कर)

-दोनों देशों के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार स्तर की वार्ता विफल

हिंदुस्तान और पाकिस्तान दो अजीब पड़ोसी हैं। बातचीत करना भी चाहते हैं और नहीं भी करना चाहते हैं। पाकिसान में सेना के हाथ में सत्ता का संचालन है। भारत में सबसे बड़े दल के पास। जिसे देश के 125 करोड़ लोगों को समर्थन हासिल है। इस पूरी बातचीत में दोनों में फर्क नजर नहीं आया।

कूटनीति के मंच पर दोनों ही देश के कर्णधार अपनी पीठ थपथपा रहे हैं। पाकिस्तान के हुकुमरान भीतर खाने सोच रहे हैं कि हम भारत के झांसे में नहीं आए हैं। बात नहीं करना थी। तो नहीं गए। भारत के कर्णधार सोच रहे हैं। नहीं बुलाना था। बस दुनिया भर को बताना था। हम तो बात करना चाहते थे। पाकिस्तान तैयार नहीं हुआ। यानि न तुम जीते न हम हारे।

क्या वास्तव में दुनिया भर के कूटनीति पर नजर रखने वाले और करने वाले इतने नासमझ होंगे। जो इन दोनों देशों के सत्ताधारियों के बनावटी खेल को नहीं समझ रहे होंगे। वे जानते हैं दोनों देश केवल अपने लोगों को गुमराह कर रहे हैं। उनका ध्यान हटाने के लिए कई दिनों से बातचीत करने का झांसा दे रहे थे। समय पर दोनों ने अपने -अपने देश के लोगों के सामने कूटनीतिक चालें चली। जनता को गुमराह किया और चुप बैठ गए। असल में दुनिया के दूसरे देश भी नहीं चाहते हैं कि एशिया में शांति रहे। क्योंकि इसे उनका हथियार समेत अन्य कारोबार ठप हो जाएगा। शांति होने पर यहां के लोगों का ध्यान बेसिक समस्याओं पर जाएगा। वे आर्थिक गुलामी के झांसे में नहीं आएंगे।

बस चुपचाप देखते रहे। दोनों देशों के अपने -अपने समर्थक हुक्मरानों को निर्देश देते रहे। बातचीत का नाटक पूरी तरह से फिल्म होना चाहिए। जनता का इससे मनोरंजन होना चाहिए। रही सही कसर सेना के तमाम अफसरों ने कर दिया। वे जवानों की मौत से आक्रोशित हैं। पर उसे रोकने के लिए होने वाले हर प्रयास और उसके पीछे की कूटनीति में हमेशा उलझ जाते हैं।

यानि जवान तो अभी भी उसी तरह से सरहद में अपने प्राण न्यौछावर करते रहेंगे। पाकिस्तान इस तरह की कूटनीति को करता ही रहेगा। क्योंकि वहां के अंदरूनी हालात बेहद खराब हैं। वह लोगों को भारत के खिलाफ भड़काकर ही उनका ध्यान हटाए रखना चाहता है। सेना अपनी पकड़ इसी डर को भुनाकर बनाए रखना चाहती है। पर भारत हर बार की तरह पाकिस्तान की कूटनीति में उलझ गई। पाकिस्तान कश्मीर को अंतरराष्ट्रीय मुद्दा बनाने की तमाम कोशिशों में लगातार सफल हो रहा है। लेकिन भारत के पास इसका कोई तोड़ नहीं है।
भारत कश्मीर मुद्दे को गौण बनाने के लिए कोई रणनीति नहीं बना पाता है। नेहरू के समय से अब तक कोई भी राजनेता इस मुद्दे को गौण नहीं बना पाया है। बल्कि अलगाव वादी लगातार ताकतवर होते जा रहे हैं। भारत केवल रुतबे से उनको दबाने की कोशिश करता है।

दुनिया के देश भारत के दवाब में आती तो है पर पाकिस्तान को नजर अंदाज नहीं करती है। चीन ने भारत को घेरने के लिए पाकिस्तान को लगातार मदद दे रही है। तब भारत को एक नई रणनीति के तहत कश्मीर मुद्दे को अंतरराष्ट्रीय मुद्दा बनने से रोकने के लिए प्रयास करना होगा। तब ही यह मुद्दा अंतरराष्ट्रीय नहीं बनेगा। वरना आने वाले समय में दुनिया के लोग भारत का साथ छोड़ देंगे। क्योंकि वहां उनके आर्थिक हित सधने लगेंगे। तब भारत के पास कोई विकल्प नहीं होगा। जरूरत है कि भारत वहां के हालात पर नए नजरिये से सोचे और कूटनीति उसी तरह से बयान।

बोल्ट की जीत से मिलते सबक

राजेश रावत- फोटो गूगल से साभार 
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-कोई भी अपराजित नहीं है
-चुनौती पर कैसे पाए विजय
जमैका के फराटा एथलीट उसैन बोल्ट ने वर्ल्ड एथलेटिक्स में 100 मीटर दौड़ तीसरी बार जीती है। वे कार्ल लुईस आैर मॉरिस ग्रीन पर पहुंच गए हैं। दुनिया का धावकों के लिए यह क्षण एेतिहासिक था। पूरी दुनिया की निगाह इस रेस पर लगी थी। रेस शुरू होने से पहले पूरी दुनिया में इस रेस को देखा जा रहा है। कारण साफ था क्या बोल्ट अपना करिश्मा बरकरार रख पाते हैं या उन्हें कड़ी चुनौती देने वाले अमेरिका के जस्टिन गैटलिन अपना 29 वां अपराजेय अभियान जारी रख सकेंगे। गैटलिन अभी तक 28 रेस में एक बार भी नहीं हारे हैं।  लगभग दो साल से विजेता बने हुए हैं।
कोई हमेशा अपराजित नहीं रह सकता है। यह गैटलिन ने 28 रेस जीतकर साबित किया है। वे अपने लक्ष्य को पाने में सफल रहे। इस रेस में भी उसी जज्बे के साथ उतरे थे। परन्तु रेस शुरू होने से ऐन पहले उनके चेहरे पर विश्व विजेता बनने का भाव नहीं था। जबकि उसैन ने रेस शुरू होने से पहले अपना नाम पुकारे जाने पर लोगों का अभिवादन विश्व विजेता की तरह ही किया। यही कारण था कि गैटलिन बोल्ट के लिए सबसे बड़ी चुनौती होने के बाद भी नए हीरो की तरह नहीं देखे गए। पूरे समय लोगों का ध्यान बोल्ट पर ही रहा। मसलन आप किसी चुनौती को स्वीकारते हैं तो व्यवहार भी वैसा ही करना होगा। देखने वालों और प्रतिव्दंदी को लगना भी चाहिए कि उसके सामने टक्कर देने वाला बगैर मानसिक दबाव के खेल रहा है। यह संकेत बोल्ट ने दिया। पर गैटलिन चूके। ऐसा नहीं है कि बोल्ट उन्हें कम आंक रहे थे। वे जानते थे कि अगर थोड़ा भी चूके तो वे पिछड़ जाएंगे। दवाब की बानगी थी कि वे एक बार दौड़ते समय लड़खड़ा भी गए थे। पर जीतने का जज्बा ही किसी को हार या जीत दिलाता है। पिछड़ने और लड़खड़ाने के बाद भी उसैन ने रेस में न सिर्फ बराबरी की। बल्कि जीतकर फिर से अपना परचम लहरा दिया।
चुनौती पर विजय पाने की उनकी अद्भुत क्षमता पर किसी को कोई शक नहीं था। पर गैटलिन के सामने चुनौती थी। वे इस पर खरे उतरने से चूक गए। हालांकि खेल में हार जीत हर नया सबक होता है। पर आपके पास जब अवसर होता और आप उसका पूरा लाभ नहीं ले पाते हैं तो उसका मलाल जीवन भर रहता है। फिर भविष्य में आप चाहे कितने ही तमगे हासिल क्यों न कर लें। चुनौती से पार पाने के लिए व्यवहार भी वैसा ही करना होता है। यह बात उसैन ने ट्रैक पर उतरने के बाद से साबित किया था। वे हारते या जीतते यह अलग बात थी। परन्तु व्यवहार में विश्व विजेता की झलक साफ दिखाते रहे। बाकी जितने भी रेस ट्रैक पर एथलीट थे वे दवाब में थे। ऐसा दवाब होना लाजिमी भी है जब आपके सामने विश्व का सबसे तेज दौड़ने वाला एथलीट है और मुकाबले में आपके हारने के सौ प्रतिशत चांस हो।
तो क्या कोई कभी अपराजेय बोल्ट को नहीं हरा पाएगा। ऐसा नहीं है। जय और पराजय हमेशा किसी की स्थाई नहीं होती है। बस उससे पार पाने के लिए आपकी तैयारी, जज्बा कैसा है सब कुछ इसी पर निर्भर करता है। अगर विश्व विजेता बनना है तो व्यवहार भी वैसा ही करना पड़ेगा। तैयारी तो आप करके आएंगे। खेल में रूचि रखने वाले जानते होंगे। बोल्ट और माइक टाइसन के व्यवहार में एक सी समानता है। जब टाइटन रिंग में आते थे तो उनका व्यवहार भी वैसा ही झलकता था। यानि विश्व विजेता का।

बोल्ट का रिकार्ड :  100 मीटर की रेस तीसरी बार जीते हैं। 2009, 2013,2015 में जीते थे ।
गैटलिन का रिकॉर्ड : जस्टिन गैटलिन 28 रेस दो साल से जीतते आ रहे हैं। फिर भी हारे