Sunday 23 August 2015

बोल्ट की जीत से मिलते सबक

राजेश रावत- फोटो गूगल से साभार 
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-कोई भी अपराजित नहीं है
-चुनौती पर कैसे पाए विजय
जमैका के फराटा एथलीट उसैन बोल्ट ने वर्ल्ड एथलेटिक्स में 100 मीटर दौड़ तीसरी बार जीती है। वे कार्ल लुईस आैर मॉरिस ग्रीन पर पहुंच गए हैं। दुनिया का धावकों के लिए यह क्षण एेतिहासिक था। पूरी दुनिया की निगाह इस रेस पर लगी थी। रेस शुरू होने से पहले पूरी दुनिया में इस रेस को देखा जा रहा है। कारण साफ था क्या बोल्ट अपना करिश्मा बरकरार रख पाते हैं या उन्हें कड़ी चुनौती देने वाले अमेरिका के जस्टिन गैटलिन अपना 29 वां अपराजेय अभियान जारी रख सकेंगे। गैटलिन अभी तक 28 रेस में एक बार भी नहीं हारे हैं।  लगभग दो साल से विजेता बने हुए हैं।
कोई हमेशा अपराजित नहीं रह सकता है। यह गैटलिन ने 28 रेस जीतकर साबित किया है। वे अपने लक्ष्य को पाने में सफल रहे। इस रेस में भी उसी जज्बे के साथ उतरे थे। परन्तु रेस शुरू होने से ऐन पहले उनके चेहरे पर विश्व विजेता बनने का भाव नहीं था। जबकि उसैन ने रेस शुरू होने से पहले अपना नाम पुकारे जाने पर लोगों का अभिवादन विश्व विजेता की तरह ही किया। यही कारण था कि गैटलिन बोल्ट के लिए सबसे बड़ी चुनौती होने के बाद भी नए हीरो की तरह नहीं देखे गए। पूरे समय लोगों का ध्यान बोल्ट पर ही रहा। मसलन आप किसी चुनौती को स्वीकारते हैं तो व्यवहार भी वैसा ही करना होगा। देखने वालों और प्रतिव्दंदी को लगना भी चाहिए कि उसके सामने टक्कर देने वाला बगैर मानसिक दबाव के खेल रहा है। यह संकेत बोल्ट ने दिया। पर गैटलिन चूके। ऐसा नहीं है कि बोल्ट उन्हें कम आंक रहे थे। वे जानते थे कि अगर थोड़ा भी चूके तो वे पिछड़ जाएंगे। दवाब की बानगी थी कि वे एक बार दौड़ते समय लड़खड़ा भी गए थे। पर जीतने का जज्बा ही किसी को हार या जीत दिलाता है। पिछड़ने और लड़खड़ाने के बाद भी उसैन ने रेस में न सिर्फ बराबरी की। बल्कि जीतकर फिर से अपना परचम लहरा दिया।
चुनौती पर विजय पाने की उनकी अद्भुत क्षमता पर किसी को कोई शक नहीं था। पर गैटलिन के सामने चुनौती थी। वे इस पर खरे उतरने से चूक गए। हालांकि खेल में हार जीत हर नया सबक होता है। पर आपके पास जब अवसर होता और आप उसका पूरा लाभ नहीं ले पाते हैं तो उसका मलाल जीवन भर रहता है। फिर भविष्य में आप चाहे कितने ही तमगे हासिल क्यों न कर लें। चुनौती से पार पाने के लिए व्यवहार भी वैसा ही करना होता है। यह बात उसैन ने ट्रैक पर उतरने के बाद से साबित किया था। वे हारते या जीतते यह अलग बात थी। परन्तु व्यवहार में विश्व विजेता की झलक साफ दिखाते रहे। बाकी जितने भी रेस ट्रैक पर एथलीट थे वे दवाब में थे। ऐसा दवाब होना लाजिमी भी है जब आपके सामने विश्व का सबसे तेज दौड़ने वाला एथलीट है और मुकाबले में आपके हारने के सौ प्रतिशत चांस हो।
तो क्या कोई कभी अपराजेय बोल्ट को नहीं हरा पाएगा। ऐसा नहीं है। जय और पराजय हमेशा किसी की स्थाई नहीं होती है। बस उससे पार पाने के लिए आपकी तैयारी, जज्बा कैसा है सब कुछ इसी पर निर्भर करता है। अगर विश्व विजेता बनना है तो व्यवहार भी वैसा ही करना पड़ेगा। तैयारी तो आप करके आएंगे। खेल में रूचि रखने वाले जानते होंगे। बोल्ट और माइक टाइसन के व्यवहार में एक सी समानता है। जब टाइटन रिंग में आते थे तो उनका व्यवहार भी वैसा ही झलकता था। यानि विश्व विजेता का।

बोल्ट का रिकार्ड :  100 मीटर की रेस तीसरी बार जीते हैं। 2009, 2013,2015 में जीते थे ।
गैटलिन का रिकॉर्ड : जस्टिन गैटलिन 28 रेस दो साल से जीतते आ रहे हैं। फिर भी हारे

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