Friday, 14 December 2018

ये मप्र की पब्लिक है चुप रहती है और समय पर निर्णय सुनाती है

पंद्रह साल पहले भी 13 दिसंबर जैसा ही नजारा था। तब दिग्विजय सिंह समझ ही नहीं पा रहे थे कि उनकी सस्कार क्यों और कैसे चली गई। जैसे शिवराज सिंह समझ नहीं पा रहे हैं। आखिर इतने काम करने के बाद भी जनता ने उन्हें क्यों नकार दिया। बस फर्क इतना है कि शिवराज को कुछ राहत है कि सत्ता के करीब पहुंचाकर सत्तारुढ होने से रोक दिया। परन्तु दिग्विजय सिंह को उस समय पूरी तरह से साफ कर दिया था। नाराजगी तब भी थी और अब भी है। दोनों ही मुख्यमंत्रियों में समानता यही है कि वे इतने नासमझ रहे कि नाराज लोगों की बात को समझ ही नहीं पाए और अगर अब भी नहीं समझ पाए तो शायद लोकसभा में कसर पूरी हो जाएगी। एेसा नहीं है कि शिवराज या दिग्विजय सिंह ने जनता के लिए काम नहीं किए या कोई योजना नहीं बनाई। दोनों ने अच्छे काम किए थे। परन्तु दोनों लोगों की तत्कालिक समस्या को नजर अंदाज करते चले गए। शिवराज सरकार से लोग तेल के दाम कम करने के लिए कहते रहे। परन्तु वे इस मुद्दे पर अड़े रहे। जबकि दूसरे प्रदेशों में काफी कम दाम पर पेट्रोल डीजल बिकता रहा। मप्र सरकार के वित्त मंत्री कहते रहे दाम कम नहीं होंगे। जब राहुल गांधी ने कहा कि किसानों का कर्ज माफ कर देंगे। शिवराज ने उस बात को फिर नजर अंदाज किया। हो सकता कि उनका अंक गणित मजबूत हो और उन्हें राहुल गांधी की बात दूर की कौड़ी लगती हो। परन्तु प्रदेश में लोगों को यही राहत की बात लगी। प्रदेश सरकार न तो पेट्रोल डीजल के दाम कम करने को तैयार हो रही है और न ही किसानों के कर्ज के बोझ पर कोई फैसला ले रही है। यह समझ कर लोगों की नाराजगी बढ़ती चली गई। किसान जिस शिवराज को अपना नुमाइंदा समझ रहा था अब वह कार्पोरेट की भाषा बोलने वाला लगने लगा था। किसान को लगने लगा था कि किसान का बेटा महानगर और सत्ता के गलियारमें खो गया है। उसे वापस जमान पर लाना होगा। इसीलिए जोर का झटका धीरे से दिया। अाखिरी प्रेस कांफ्रेस में शिवाराज के चेहरे पर गहरे सदमे के भाव वे छिपा नहीं पाए। उनकी यही सादगी ही लोगों को पसंद थी। लेकिन में क्रूर प्रशासक बनने की कोशिश में लोगों से दूर होते चले गए। जिसकी वजह से लोगों ने भी उनका साथ छोड़ दिया। एेसा नहीं कि कांग्रेस से लोगों को बहुत अपेक्षा है लेकिन उन्हें एेसा लगता था कि सत्ता परिवर्तन से शायद उनकी थोड़ी परेशानी कम हो सकती है। जैसा मीडिया में बताया जा रहा है कि कमलनाथ सबको साधने में माहिर है लोगों को थोड़ी आशा जगी है कि कुछ राहत की बूंदे सत्ता के गलियारे से जनता के बीच टपकेंगी। अभी लोकसभा चुनाव आने वाले हैं इसलिए कांग्रेस के साथ ही भाजपा की केंद्र सरकार भी कुछ राहत दे सकती है। शायद जनता यह समझ रही थी इसीलिए उसका यह फैसला महत्वपूर्ण है। दोनों ही दलों में अब होड़ मची रहेगी कि वे राहत के कदम उठाएं। मोदी जी के सामने जुमलो को हकीकत में बदलने का मौका होगा तो कांग्रेस को वचन निभाने की मोहलत मिली है। दोनों के पैतरेबाजी को बड़े ही शांत स्वभाव से सब देख रहे हैं।

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