Thursday, 19 December 2013

विदेश में मान अपमान हमारे हाथ में
राजेश रावत
१९ दिसबंर २०१३ भोपाल

अमेरिका में अब तक अनेक भारतीयों को अपमानित किया गया है। हर बार भारत सरकार चुप्पी लगा जाती थी। इससे अमेरिका में भारतीयों के साथ बदतमीजी करने की छूट मिलती रही। हर बार सुरक्षा का हवाला देकर अपमानित करने वाले अधिकारियों पर कोई कार्रवाई नहीं की गई। तब अमेरिका में भी हालात तनाव के थे। इससे भारत सरकार की हिम्मत नहीं होती थी कि वह विरोध जता सके। यह तर्क विदेश नीति के जानकार दे सकते थे। लेकिन हकीकत यह है कि भारतीय लगातार अमेरिका में अपमानित होकर भी वहां जाने को लालायित रहते हैं। पढ़ने या रोजगार के लिए विदेश जाना बुरा नहीं है। लेकिन अपमानित होने के बाद भी कुछ लाभ के लिए जाना खुद के अलावा देश की गरिमा के साथ भी खिलवाड़ है। उस पर तुर्रा यह कि विदेश जाने के फैसले के समर्थन में गलत तर्क देना में पीछे नहीं हटते। विदेश पढ़ने जाना जितना हमारे लिए जरूरी है। उससे ज्यादा दूसरे देशों को हमारे देश के अच्छे युवाओं की जरूरत है। वहीं वे भारत में अपने मार्केट को बढ़ाने के लिए भी ज्यादा सैलरी देने का प्रलोभन देते हैं। फेसबुक हो या गूगल इसके ताजा उदाहरण है। दोनों कंपनिया केवल अपने मार्केट को बढ़ाने के युवाओं को करोड़ा का पैकेज दे रही है। नासा हो या अन्य बढ़े विदेशी संस्थान उन्हें केवल अच्छे टेलेंट की दरकार होती है। यह उनकी मोनोपॉली भी मान सकते हैं कि एक्सट्राआर्डिनरी दिमाग को केवल अपनी संपत्ति मानकर इस्तेमाल करते हैं।
माना कि देश में बहुत सी कमी है। लेकिन क्या अच्छे जॉब और अच्छी सेलरी देश में नहीं मिलती है। उन लोगों के सामने कुछ उदाहरण दे रहा हूं। सबसे पहले बात करते हैं। सुपर ३० के संस्थापक आनंद का। उनकी सफलता का लोहा पूरी दुनिया मान चुकी है। चीन से भी उनकी पढ़ाई का पेटर्न जानने के लिए छात्र और अध्यापाक आ चुके हैं। वे पैसे कमाने के साथ ही देश के युवाओं को सही मार्गदर्शन दे रहे हैं। बिजनेस में टाटा और अंबानी का नाम किसी पहचान की मोहताज नहीं है। इसके अलावा एेसे अनेक लोग हैं। जो बिना विदेश मोहर के अपनी पहचान बना चुके हैं। जरूरत है देश के युवाओं को इस बात को समझाने की विदेश पढ़ने जाएं परन्तु मान-अपमान की कीमत पर नहीं। अगर इस विचार के साथ विदेश जाने की तैयारी कराने लगे तो शायद आने वाले भविष्य में इस तरह अपमानित होने की घटनाएं नहीं होगी। 

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