-केजरीवाल की जेल भेजने की धमकी से हड़कंप
अरविंद केजरीवाल के एक बयान के सामने आने के बाद देश के सभी टीवी चैनल घबरा गए। प्राइम टाइम पर केवल इसी विषय पर ही डिबेट कराई गई। केजरीवाल ने मीडिया की उस दुखती रग को दबा दिया था। इसका असर तो होना ही था। मीडिया घरानों को उम्मीद नहीं थी कि केजरीवाल इस तरह के बयान देकर उनकी पोल खोल देंगे। लेकिन चैनलों को देखने वाले समझ गए हैं कि केजरीवाल ने सही बात कही है। कुछ चैनल मोदी की छवि को गढ़ने के बाकायदा अभियान चला रहे थे। इसमें इन मीडिया घरानों की सहमति या असहमति अलग बात है।
पिछले एक साल से जो टीवी चैनलों पर मोदी समर्थन का अभियान चल रहा है। उसका हाल यह होना ही थी। इस धमकी का कुछ असर जरूर दिखा। लेकिन मीडिया की खीज भी चैनलो पर सर्वे के रूप में सामने आई। जबकि कुछ दिनों पहले ही सर्वे के नाम पर चलने वाले खेल का खुलासा भी एक टीवी चैनल में किया गया था। आम लोगों के मन में सवाल आता है कि वोट हमें देना है। फिर ये चैनल वाले होते कौन हैं हमें भ्रमित करने वाले। दिल्ली में आप पार्टी को चार -पांच सीटें देने वाले चैनलों को मुंह की खानी पड़ी थी। लोकसभा चुनाव के दौरान भी इनका यही ह्श्र होने वाला है।
कभी भी भारत में पूरा मीडिया निष्पक्ष नहीं रहा। बस दिखावा ही करता रहा है। कुछ मीडिया हाउस जरूर इसका अपवाद है। जो निष्पक्ष हैं उनके विषय में देश के लोगों को पता है। उन पर कभी कोई आरोप नहीं लगा। जब भी उनकी क्रेडिबिलिट पर प्रश्न चिन्ह लगा। तब उन्होंने इसका अपनी खबरों से गलत साबित किया है।
भारत में मीडिया का ढांचा एेसा बना हुआ है कि ज्यादातर मीडिया हाउसों को किसी न किसी राजनेता या राजनीतिक दलों का दामन थामना पड़ता है। जो इनके साथ नहीं जु़ड़ता है उसे बहुत संघर्ष करना पड़ता है। जो इन संघर्षो से डर जाते हैं। वे इनके अनुयायी हो जाते हैं। महानगर से लेकर छोटे शहरों तक एेसे लोगों को हर आदमी जानता है।
भाजपा हो या कांग्रेस सभी दलों में मीडिया में काम करने वाले लोग शामिल है। केजरीवाल के साथ भी मीडिया के लोग हैं। जब इन लोगों ने मीडिया के काम करने की जानकारी दी तो केजरीवाल भड़क गए। किसी राजनीतिक दल ने इस तरह की धमकी मीडिया को दी हो यह पहली बार नहीं है। मायावती और मुलायम तो हल्लाबोल जैसे आंदोलन तक चला चुके हैं। हरियाणा में बंसीलाल के आक्रोश का शिकार भी मीडिया हो चुका है।
मीडिया को इस तरह की धमकी से बचना है तो सर्वे के नाम पर चलने वाली गलत प्रेक्टिस से बचना होगा। चुनाव में तटस्थ दिखना ही नहीं खबरों और कवरेज दिखाकर साबित भी करना होगा। ताकि कोई उस पर अंगुली नहीं उठा सके।
अरविंद केजरीवाल के एक बयान के सामने आने के बाद देश के सभी टीवी चैनल घबरा गए। प्राइम टाइम पर केवल इसी विषय पर ही डिबेट कराई गई। केजरीवाल ने मीडिया की उस दुखती रग को दबा दिया था। इसका असर तो होना ही था। मीडिया घरानों को उम्मीद नहीं थी कि केजरीवाल इस तरह के बयान देकर उनकी पोल खोल देंगे। लेकिन चैनलों को देखने वाले समझ गए हैं कि केजरीवाल ने सही बात कही है। कुछ चैनल मोदी की छवि को गढ़ने के बाकायदा अभियान चला रहे थे। इसमें इन मीडिया घरानों की सहमति या असहमति अलग बात है।
पिछले एक साल से जो टीवी चैनलों पर मोदी समर्थन का अभियान चल रहा है। उसका हाल यह होना ही थी। इस धमकी का कुछ असर जरूर दिखा। लेकिन मीडिया की खीज भी चैनलो पर सर्वे के रूप में सामने आई। जबकि कुछ दिनों पहले ही सर्वे के नाम पर चलने वाले खेल का खुलासा भी एक टीवी चैनल में किया गया था। आम लोगों के मन में सवाल आता है कि वोट हमें देना है। फिर ये चैनल वाले होते कौन हैं हमें भ्रमित करने वाले। दिल्ली में आप पार्टी को चार -पांच सीटें देने वाले चैनलों को मुंह की खानी पड़ी थी। लोकसभा चुनाव के दौरान भी इनका यही ह्श्र होने वाला है।
कभी भी भारत में पूरा मीडिया निष्पक्ष नहीं रहा। बस दिखावा ही करता रहा है। कुछ मीडिया हाउस जरूर इसका अपवाद है। जो निष्पक्ष हैं उनके विषय में देश के लोगों को पता है। उन पर कभी कोई आरोप नहीं लगा। जब भी उनकी क्रेडिबिलिट पर प्रश्न चिन्ह लगा। तब उन्होंने इसका अपनी खबरों से गलत साबित किया है।
भारत में मीडिया का ढांचा एेसा बना हुआ है कि ज्यादातर मीडिया हाउसों को किसी न किसी राजनेता या राजनीतिक दलों का दामन थामना पड़ता है। जो इनके साथ नहीं जु़ड़ता है उसे बहुत संघर्ष करना पड़ता है। जो इन संघर्षो से डर जाते हैं। वे इनके अनुयायी हो जाते हैं। महानगर से लेकर छोटे शहरों तक एेसे लोगों को हर आदमी जानता है।
भाजपा हो या कांग्रेस सभी दलों में मीडिया में काम करने वाले लोग शामिल है। केजरीवाल के साथ भी मीडिया के लोग हैं। जब इन लोगों ने मीडिया के काम करने की जानकारी दी तो केजरीवाल भड़क गए। किसी राजनीतिक दल ने इस तरह की धमकी मीडिया को दी हो यह पहली बार नहीं है। मायावती और मुलायम तो हल्लाबोल जैसे आंदोलन तक चला चुके हैं। हरियाणा में बंसीलाल के आक्रोश का शिकार भी मीडिया हो चुका है।
मीडिया को इस तरह की धमकी से बचना है तो सर्वे के नाम पर चलने वाली गलत प्रेक्टिस से बचना होगा। चुनाव में तटस्थ दिखना ही नहीं खबरों और कवरेज दिखाकर साबित भी करना होगा। ताकि कोई उस पर अंगुली नहीं उठा सके।