-बदलाव के लिए आम आदमी की मजबूरी है केजरीवाल
-निरंकुश राजनेताओं और राजनीतिक दल पर लगाम का एकमात्र विकल्प
सभी राजनेता और राजनीतिक दल हमेशा से ही अपने -अपने वादों से मुकरते रहे है। जनता भी जानती है। आप नेता अरविंद केजरीवाल से डरे देश के सभी बढ़े राजनीतिक दल उन पर अपनी बातों से मुकरने का आरोप लगाने अधिकार ही नहीं रखते हैं। लेकिन बेशर्मी से टीवी चैनलों पर उन्हें वादों की याद दिलाते रहते हैं। उनकी सारी कोशिश केवल जनता को भ्रमित करने की है।
ताकि आम आदमी उनके खिलाफ खड़ा न हो सके। आप सारे नेताओं के वादों को भूल जाएं। आम आदमी हर वक्त अपनी बातों से नहीं मुकरता है क्या। दूर जाने की जरूरत नहीं है। जैसे ही कोई विपदा आती है। सबसे पहले आपका पड़ोसी ही अपने खोल में घुस जाता है। पड़ोसी को भी छोड़ दीजिए आप खुद कई बार कन्नी काट चुके होंगे।
अगर ये सही नहीं होता तो आज सड़कों पर हादसे के बात कोई भी आदमी तड़पते हुए दम नहीं तोड़ता। अधिकांश घरों में चोरी नहीं हो सकती है। सरे आम लूट और डकैती की घटना नहीं होती। अगर आज यह सब हो रहा है। तो साफ है। आम आदमी अपनी सुविधा से बदल जाता है। अगर अरविंद केजरीवाल कुछ बातों से पीछे हटे हैं तो क्या बुरा किया। हालात के आगे मजबूरी में कई बार आम आदमी की तरह ही उन्हें भी कदम पीछे खींचने पड़ते हैं। आखिर वे भी आम आदमी है।
हम उनसे क्यों पीछे कदम खींचने पर कोसते हैं। नेता आम आदमी की इसी कमी का फायदा उठाना चाहता है। भारत की सामाजिक बनावट ही दोहरी मानसिकता वाली है। हर कोई भगत सिंह का जन्म पड़ोसी के घर में चाहता रहा है। इस तरह की समस्या से महात्मा गांधी को भी दो चार होना पड़ा था।
चौरा-चोरी कांड के बाद जब उन्होंने आंदोलन को वापस लिया था। तब देश में भर में उनके खिलाफ नाराजगी बढ़ गई थी। परन्तु वे अपने निर्णय पर डटे रहे थे। उनका उद्देश्य देश में चलने वाले आंदोलन को अराजक होने से रोकना था। केजरीवाल के फैसले भी इसी श्रेणी में रखे जा सकते हैं। जरूरत है कि आम आदमी देश में जो बदलाव की बयार लाने की जो कोशिश केजरीवाल कर रहे हैं। उसका समर्थन करें। इससे आम आदमी को फायदा होगा। सरकार चाहे किसी की बने। इसका लाभ आदमी को मिलेगा। अगर एेसा नहीं होता तो मोदी से लेकर राहुल तक आम आदमी की बात नहीं करते।
सब राजनीतिक दलों के एजेंडा और मानसिकता बदली है। हालांकि अभी पूरे बदलाव के लिए केजरीवाल को पचास से ज्यादा सीट दिलाना आम आदमी की मजबूरी है। अगर वह केजरीवाल को आम चुनाव में इस हद तक समर्थन नहीं करेगा तो केजरीवाल से ज्यादा नुकसान उसका खुद होगा। क्योंकि आने वाली सरकारों की निरकुशता पर लगाम लगाने के लिए केजरीवाल जैसे लोगों की इस देश में सख्त जरूरत है।
इस देश के सड़-गल चुके सिस्टम को दुरुस्त करने के लिए कोई अवतार नहीं आने वाला है। आम आदमी को खुद अवतार बनना होगा। अगर कोई हिम्मत करते हुए आगे आता है तो उसे समर्थन देना होगा। तभी बदलाव नजर आएगा।
जो लोग डर कर केजरीवाल का साथ छोड़कर जा रहे हैं। इस तरह के वाकये हर दौर में हुए हैं। कोई भी इसका अपवाद नहीं है। केजरीवाल को छोड़कर जाने वालों से उन्हें ही लाभ ज्यादा मिलेगा। लोग समझ रहे हैं कि जो लोग पहले टिकट लेने के लिए केजरीवाल के आगे गिडगिड़ा रहे थे। वे राजनीतिक दलों के षडंयत्रों और दबाव में कदम पीछे खींच रहे हैं।
-राजेश रावत
भोपाल
-निरंकुश राजनेताओं और राजनीतिक दल पर लगाम का एकमात्र विकल्प
सभी राजनेता और राजनीतिक दल हमेशा से ही अपने -अपने वादों से मुकरते रहे है। जनता भी जानती है। आप नेता अरविंद केजरीवाल से डरे देश के सभी बढ़े राजनीतिक दल उन पर अपनी बातों से मुकरने का आरोप लगाने अधिकार ही नहीं रखते हैं। लेकिन बेशर्मी से टीवी चैनलों पर उन्हें वादों की याद दिलाते रहते हैं। उनकी सारी कोशिश केवल जनता को भ्रमित करने की है।
ताकि आम आदमी उनके खिलाफ खड़ा न हो सके। आप सारे नेताओं के वादों को भूल जाएं। आम आदमी हर वक्त अपनी बातों से नहीं मुकरता है क्या। दूर जाने की जरूरत नहीं है। जैसे ही कोई विपदा आती है। सबसे पहले आपका पड़ोसी ही अपने खोल में घुस जाता है। पड़ोसी को भी छोड़ दीजिए आप खुद कई बार कन्नी काट चुके होंगे।
अगर ये सही नहीं होता तो आज सड़कों पर हादसे के बात कोई भी आदमी तड़पते हुए दम नहीं तोड़ता। अधिकांश घरों में चोरी नहीं हो सकती है। सरे आम लूट और डकैती की घटना नहीं होती। अगर आज यह सब हो रहा है। तो साफ है। आम आदमी अपनी सुविधा से बदल जाता है। अगर अरविंद केजरीवाल कुछ बातों से पीछे हटे हैं तो क्या बुरा किया। हालात के आगे मजबूरी में कई बार आम आदमी की तरह ही उन्हें भी कदम पीछे खींचने पड़ते हैं। आखिर वे भी आम आदमी है।
हम उनसे क्यों पीछे कदम खींचने पर कोसते हैं। नेता आम आदमी की इसी कमी का फायदा उठाना चाहता है। भारत की सामाजिक बनावट ही दोहरी मानसिकता वाली है। हर कोई भगत सिंह का जन्म पड़ोसी के घर में चाहता रहा है। इस तरह की समस्या से महात्मा गांधी को भी दो चार होना पड़ा था।
चौरा-चोरी कांड के बाद जब उन्होंने आंदोलन को वापस लिया था। तब देश में भर में उनके खिलाफ नाराजगी बढ़ गई थी। परन्तु वे अपने निर्णय पर डटे रहे थे। उनका उद्देश्य देश में चलने वाले आंदोलन को अराजक होने से रोकना था। केजरीवाल के फैसले भी इसी श्रेणी में रखे जा सकते हैं। जरूरत है कि आम आदमी देश में जो बदलाव की बयार लाने की जो कोशिश केजरीवाल कर रहे हैं। उसका समर्थन करें। इससे आम आदमी को फायदा होगा। सरकार चाहे किसी की बने। इसका लाभ आदमी को मिलेगा। अगर एेसा नहीं होता तो मोदी से लेकर राहुल तक आम आदमी की बात नहीं करते।
सब राजनीतिक दलों के एजेंडा और मानसिकता बदली है। हालांकि अभी पूरे बदलाव के लिए केजरीवाल को पचास से ज्यादा सीट दिलाना आम आदमी की मजबूरी है। अगर वह केजरीवाल को आम चुनाव में इस हद तक समर्थन नहीं करेगा तो केजरीवाल से ज्यादा नुकसान उसका खुद होगा। क्योंकि आने वाली सरकारों की निरकुशता पर लगाम लगाने के लिए केजरीवाल जैसे लोगों की इस देश में सख्त जरूरत है।
इस देश के सड़-गल चुके सिस्टम को दुरुस्त करने के लिए कोई अवतार नहीं आने वाला है। आम आदमी को खुद अवतार बनना होगा। अगर कोई हिम्मत करते हुए आगे आता है तो उसे समर्थन देना होगा। तभी बदलाव नजर आएगा।
जो लोग डर कर केजरीवाल का साथ छोड़कर जा रहे हैं। इस तरह के वाकये हर दौर में हुए हैं। कोई भी इसका अपवाद नहीं है। केजरीवाल को छोड़कर जाने वालों से उन्हें ही लाभ ज्यादा मिलेगा। लोग समझ रहे हैं कि जो लोग पहले टिकट लेने के लिए केजरीवाल के आगे गिडगिड़ा रहे थे। वे राजनीतिक दलों के षडंयत्रों और दबाव में कदम पीछे खींच रहे हैं।
-राजेश रावत
भोपाल
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