प्रधानमंत्री के पूर्व मीडिया सलाहकार संजय बारू की किताब "द एक्सीडेंटल प्राइम मिनिस्टर — द मेकिंग एंड अनमेकिंग आफ मनमोहनसिंह " किताब को बेचने की एक सोची -समझी रणनीति का हिस्सा ही है। इस किताब में भी बहुत कुछ साफ किया गया है कि वह उस समय की चर्चा पर आधारित है। पीएमओ भी साफ कर चुका है कि संजय बारू की बात पर भरोसा नहीं किया जाना चाहिए। हालांकि उनकी किताब की सूचनाओं को पूरी तरह से खारिज करना ठीक नहीं है।
चुनाव के समय आना संदेह ः चुनाव के ठीक पहले किताब का आना कई संदेहों को जन्म देता है। भाजपा इसका राजनीतिक लाभ तो उठाएगी ही। संजय बारू मीडिया से जुड़े रहे हैं। वे कितने साफ -सुधरे अधिकारी रहे हैं। इस पर खुलासा अभी नहीं हुआ है। आने वाले समय में होने पर साफ होगा। वे भाजपा से नहीं मिलें हो इसका कोई प्रमाण नहीं है। जिस तरह से अधिकारी और सेना से जुड़े लोग लाभ लेने के उद्देश्य से भाजपा से जुड़ रहे हैं संजय बारू का प्रयास भी इसी कड़ी का हिस्सा हो सकता है। वैसे भी अधिकारियों का कोई इमान धरम नहीं होता है। जो सत्ता में आता है उसके साथ हो जाते हैं। इसके प्रमाण सत्यपाल सिंह, वीके सिंह जैसे लोगों ने जनता को दिया है।
किताब बेचने की पुरानी रणनीति ः जो लोग इस तरह की किताबों का इतिहास जानते हैं उन्हें पता है कि जब तब कई अधिकारी इस तरह से अपनी किताबों को लोकप्रिय बनाने के लिए इस तरह के हथकंडे इस्तेमाल करते रहे हैं। आज भाजपा एक अधिकारी पर इतना भरोसा जताकर मनमोहन और सोनिया से जबाव मांग रहे हैं। तो मोदी पर आरोप लगाने वाले अधिकारियों पर कांग्रेस से मिले होने के आरोप लगाते समय चुप क्यों हो जाते हैं। दंगों को लेकर मोदी पिछले कई सालों से इस तरह के आरोप झेल रहे हैं। एक महिला की जासूसी का मामला भी तो एक पूर्व कलेक्टर ने ही उठाया था। तो क्या वह सही है। दंगा में मामले में संजीव और अन्य अधिकारी सही हैं क्या। किरण बेदी भी अन्ना का साथ छोड़कर भाजपा का दामन थाम चुकी हैं।
एनकाउंटर में अमित शाह भी दोषी हैं क्या ः गुजरात के एनकाउंटर में अमित शाह जो तब गृहमंत्री थे। उन पर भी आरोप लगे हैं। इसका मतलब यह लगाया जाए कि जो अधिकारी उन पर आरोप लगा रहे हैं वे सहीं बोल रहे हैं। मोदी ने वास्तव में दंगों में पुलिस को कार्रवाई करने से रोका था। अगर यह सब आरोप झूठे और बेबुनियाद है तो संजय बारू के आरोप लगत है और अगर यह आरोप सहीं तो संजय बारू के आरोप को भी इसी संर्दभ में देखा जाना चाहिए। मेरा उद्देश्य न तो प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को बेदाग या सोनिया गांधी का बचाव करना है। बल्कि उन तथ्यों को सामने रखना है जो देश में इस समय जनता को गुमराह करने के लिए बताए जा रहे हैं।आप नेता अरविंद केजरीवाल पहले ही कह चुके हैं कि भाजपा और कांग्रेस एक ही थाली के चट्टे-बट्टे हैं। दोनों ही लोगों को केवल गुमराह करने की कोशिश में लगे रहते हैं। भाजपा कांग्रेस को सत्ता से दूर करने में जीजान से जुटी हुई है और कांग्रेस किसी भी कीमत पर उसे बहुमत में आने से रोकने में। कांग्रेस जानती है कि उसे सत्ता नहीं मिलने वाली है। परन्तु वह भाजपा को सत्ता में काबिज होते हुए भी सहन नहीं कर पा रही है। बस यही लड़ाई दोनों दलों के बीच चल रही है। केजरीवाल का चीर हरण भी कांग्रेस नेताओं ने इसीलिए कराया है। हालांकि राहुल ने उनकी तारीफ करने पुराने और घाव कांग्रेसियों को नसीहत देने की कोशिश की थी। लेकिन उनकी तमाम कोशिशों को इन नेताओं ने भाजपा के साथ मिलकर रसातल में पहुंचा दिया है। अन्ना हजारे को इतना कन्फ्यूज किया कि वे केजरीवाल से न सिर्फ दूर हो गए। बल्कि दुश्मन की तरह देखने लगे हैं।
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