80 -90 के दशक में जब रामायण और महाभारत सीरियल टेलीविजन पर शुरू हुआ था। तब देश में अलग माहौल था। रविवार को प्रसारित होने के समय देश भर के गांवों और कस्बों में स्वतः कफर्यू लग जाता । हर एपिसोड का लोग एक सप्ताह तक इंतजार करते थे। सप्ताह भर चर्चा होती रहती थी। तब आस्था का मामला था। टीवी का क्रेज का दौर था। उसके बाद कई बार दोनों टीवी सीरियल आ चुके हैं। इस बार महाभारत का नया संस्करण चल रहा है। रौचकता के साथ कलाकार नए हैं। इतना ही क्रेज इस बार देखने को मिला। आश्चर्य स्वभाविक था।
गहराई से जाकर पता किया तो घोर आश्चर्य हुआ। नई पीढ़ी रामायण और महाभारत को एक स्टोरी की तरह समझाना चाहती है। या यह कहें कि जिन बच्चों ने केवल पढ़ा है या सुना है वह इसे देखना चाहते हैं। ताकि समझ सकें। यह उमंग उसी तरह की है जिस तरह का उत्साह 80-90 के दशक में था। बस फर्क है तो उनकी समझ का। उस दौर में लोग टेक्नालॉजी के प्रयोग को आंखे फाड़कर और दांतों तले उंगली दबाकर देखते थे। आज का युवा जानता है कि तकनीक से इमेज ग्राफिक आसानी से बनाए जा सकते हैं। उसे इनके प्रयोग से आश्चर्य नहीं होता। न ही वह किसी अंधविश्ववास में फंसता है। वह पुरानी जड़ों से जुड़ रहा है।
स्कूलों और कॉलेजों में इस पर बाकायदा चर्चा होती है। पूरी कहानी को टीवी पर घटते हुए देखने से उसकी रुचि लाइव देखने से बढ़ जाती है। अभिनय करते पात्र उसे अपने दौर के कलाकारों की तरह कनेक्ट करते हुए लगते हैं। युवाओं के इस तरह के दर्शकों में अंग्रेजी स्कूलों के छात्र-छात्राओं की संख्या ज्यादा है। वे इतने सजग हैं कि संवादों की छोटी से छोटी गलती, रुकावट, अटकाव और भटकाव पर भी चर्चा करते हैं। किस कलाकार की ड्रेस उस पर कितनी जंची और किस कलाकार पर नहीं। उसकी आलोचना और सराहना करने से पीछे नहीं हटते हैं।
यानि महाभारत और रामायण हर दौर के युवाओं को प्रभावित करती रहेगी। यह देश के लिए अच्छा ही है। युवा अपनी जड़ों के साथ जुड़कर गर्व महसूस कर रहे हैं। इसे इन दोनों महाकाव्यों उपललिब्ध माना जाना चाहिए। इन्हें गढ़ने की कालाकारी । कालजयी रचनाएं इसी तरह से हर युग में प्रभावित करती रही हैं। बस जरूरत है उन पर धर्म का मुल्लामा नहीं चढ़ाया जाए। वर्ना 90 के अंत के बाद से समझदार लोगों ने जिस तरह से इनसे दूरी बनाना शरू की थी। वह आगे भी बनती रहेगी। एक दौर एेसा भी था जब रामायण और महाभारत का जिक्र करने वाले से लोग कन्नी काटने लगते थे। वे उसे धर्म भूरी समझते थे। नए दौर का दुश्मन। जबकि कभी भी उसने न तो मंदिर जाना छोड़ा था और न ही पूजा -पाठ या भगवान को मानना बंद किया था। बस सार्वजिनक रूप से स्वीकारने से बचने लगा था।
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