Saturday 18 April 2015

महात्मा गांधी के अपमान के बहाने अपना सम्मान बढ़ाते लोग

देश की आजादी में महात्मा गांधी का जो योगदानहै। उस पर देश की बात छोड़ दीजिए दुनिया को भी संदेह नहीं है। फिर भी ऐसा क्या है कि लोग वर्षों से उनका अपमान करते आ रहे हैं। हर नई पीढ़ी के मन में महात्मा गांधी के सम्मान को लेकर संशय उत्पन्न होता है। कुछ ज्यादा ही उग्र विचारों के लोग अपमान करने से नहीं चूकते हैं। अभी हाल ही कई लोगों के बयानों से इस विवाद को फिर हवा मिल गई। इससे गांधी वादी या उनके विरोधी दोनों के बीच चर्चा का विषय एक बार फिर गांधी जी के इर्दगिर्द आ गया। उनके विरोधी भी मानते हैं कि उनकी कई बातों से देश में राष्ट्रीय एकता की भावना का प्रसार-प्रचार हुआ। लोग खुलकर अंग्रेजों के विरुद्ध एकजुट हुए। उस समय भी उनकी कार्यप्रणाली से देश का एक तबका इत्तेफाक नहीं रखता था। पर वे गांधी जी का उतना ही सम्मान करते थे, जितना की उनके समर्थक।
आजादी के बाद आम आदमी की नजर में गांधी जी का सम्मान कभी कम नहीं हुआ। पर कुछ लोगों ने अपने गुस्से के इजहार के लिए उनके सम्मान में अपमानजक बातें कहना शुरू कर दी। यहीं से एक नया सिलसिला शुरू हो गया। लोगों को लगने लगा गांधी जी के अपमान में कुछ भी कहने से लोगों का उनकी तरफ ध्यान जाएगा। उन्हें नए नजरिये से देखा जाएगा। जबकि वास्तव लोग एेसे लोगों की असंवेदनशीलता के नजरिये पर आश्चर्य करते थे। कोई कैसे किसी महान व्यक्ति के बारे कह सकता है। बेचारे अपने को ज्यादा गंभीर दिखाने के चक्कर में खुद ही दया के पात्र बन गए। उनके लिए सुप्रीम कोर्ट के जज जस्टिस दीपक मिश्रा और प्रफुल्ल सी पंत की बेंच एक नजीर है।
 दरअसल, 1994 बैंक ऑफ महाराष्ट्र कर्मचारी यूनियन की इन हाउस मैगजीन में यह कविता छपी थी। शीर्षक था, ‘गांधी माला भेटला होता’ यानी ‘गांधी मुझसे मिले थे’। कविता 1984 में मराठी कवि वसंत दत्तात्रेय गुर्जर ने लिखी थी। इसमें गांधीजी के मुंह से कई टिप्पणियां करवाई गई हैं।
इस केस की सुनवाई के दौरान महात्मा गांधी पर लिखी गई विवादित मराठी कविता  से सुप्रीम कोर्ट जज भावुक हो उठे। कविता को अश्लील और आपत्तिजनक बताया। फिर कहा, ‘राष्ट्रपिता का सम्मान करना हर नागरिक की जिम्मेदारी है। ऐसी कविता आहत करती है। हम उनका अपमान कैसे कर सकते हैं?’

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