देश में लंबे समय से इतिहास बदलने का मुद्दा उठता रहा है। जब तब इतिहास की अनेक खामियों को गिनाकर इसे बदलने की वकालात करने वाले आवाज बुलंद करते हैं। उनके विरोधी इतिहास को तो़ड़ने मरोड़ने की कोशिश करार देकर विरोध करने लगते हैं। इससे न तो इतिहास बदला जा पा रहा है। और न ही नया लिखने में जितनी ऊर्जा लगनी चाहिए। या प्रयास करने चाहिए नहीं हो पाते हैं। इससे भी ज्यादा भयानक पहलू सामने आने लगा है। वह यह कि इतिहास को लिखने वाले ही इसे हाथ लगाने से डरने लगे है। कुछ अपवादों को छोड़कर। जबकि होना यह चाहिए कि जो बीत चुका और छोड़कर आगे जो अच्छा किया जा सकता है। उसे करने की कोशिश हो। आप नया इतिहास लिख दीजिये। किसी ने आपको रोका नहीं है। आप नया इतिहास लिखते समय इस बात का भी उल्लेख कर सकते हैं कि नया इतिहास लिखने की जरूरत क्यों पड़ी और क्या बदलाव किए गए हैं। इससे आने वाली पीढ़ी को दोनों ही बातों का पता चल जाएगा। जिसे जिस पर भरोसा करना है। वह करे। जिसे नहीं करना है। वह न करें।
किसी को भी इससे कोई आपत्ति नहीं होगी। वैसे भी इतिहास कभी बिना भेदभाव के न तो लिखा गया है और न आगे लिखा जाएगा। हर बार इतिहास को बदलने की कोशिश होती रही है। पहले देश काल और परिस्थितियां अलग थी। अब अलग हैं। अगर ऐसा नहीं होता तो भारत पर या दुनिया के जितने भी देशों पर विदेशी लोगों ने आक्रमण किए उनका ही इतिहास चलता रहता। परन्तु ऐसा नहीं है। जहां भी इस तरह की कोशिश हुई वह विफल ही हुई है। यह इतिहास बदलने और वैसा ही रखे जाने की वकालात करने वाले दोनों ही वर्ग जानते हैं। वे तो बस माहौल बनाने में लगे रहते हैं। ताकि उसकी तरफ लोगों का ध्यान जाए। उनके सत्ता में आने या संघर्ष करने को भी इतिहास में दर्ज कर लिया जाए। जब दोनों पक्ष इतिहास लिखें तो वे इसका जिक्र अपने -अपने हिसाब से करें। मसलन इतिहास बदलने वाले लोग इसकी वकालत करने वालों को महान बताएंगे। वहीं इतिहास बदलने का विरोध करने वाले उन्हें विलेन के रूप में इतिहास में दर्ज करेंगे।
आम आदमी इस बात से कोई सरोकार नहीं रखता है। वह जानता है कि इतिहास न तो बनता है और न ही बनाया जाता है। इतिहास तो खुद व खुद एक समय के बाद बन जाता है। बस उसमें अलग अलग तबकों के नायक और विलेन होते हैं। जिनको लेकर दो पक्षों का अलग -अलग नजरिया होता है।
एक कालखंड की समस्त घटनाएं दूसरे कालखंड का स्वत: ही इतिहास बन जाती है। इसका लोग अपने हिसाब से ही अंदाज लगाते हैं और आकलन करते हैं। उनके समय में परिस्थितों के बदलने में नजरिया अहम भूमिका निभाता है। इसलिए हर बार इतिहास से खिलावाड़ की कोशिश बंद होना चाहिए।
किसी को भी इससे कोई आपत्ति नहीं होगी। वैसे भी इतिहास कभी बिना भेदभाव के न तो लिखा गया है और न आगे लिखा जाएगा। हर बार इतिहास को बदलने की कोशिश होती रही है। पहले देश काल और परिस्थितियां अलग थी। अब अलग हैं। अगर ऐसा नहीं होता तो भारत पर या दुनिया के जितने भी देशों पर विदेशी लोगों ने आक्रमण किए उनका ही इतिहास चलता रहता। परन्तु ऐसा नहीं है। जहां भी इस तरह की कोशिश हुई वह विफल ही हुई है। यह इतिहास बदलने और वैसा ही रखे जाने की वकालात करने वाले दोनों ही वर्ग जानते हैं। वे तो बस माहौल बनाने में लगे रहते हैं। ताकि उसकी तरफ लोगों का ध्यान जाए। उनके सत्ता में आने या संघर्ष करने को भी इतिहास में दर्ज कर लिया जाए। जब दोनों पक्ष इतिहास लिखें तो वे इसका जिक्र अपने -अपने हिसाब से करें। मसलन इतिहास बदलने वाले लोग इसकी वकालत करने वालों को महान बताएंगे। वहीं इतिहास बदलने का विरोध करने वाले उन्हें विलेन के रूप में इतिहास में दर्ज करेंगे।
आम आदमी इस बात से कोई सरोकार नहीं रखता है। वह जानता है कि इतिहास न तो बनता है और न ही बनाया जाता है। इतिहास तो खुद व खुद एक समय के बाद बन जाता है। बस उसमें अलग अलग तबकों के नायक और विलेन होते हैं। जिनको लेकर दो पक्षों का अलग -अलग नजरिया होता है।
एक कालखंड की समस्त घटनाएं दूसरे कालखंड का स्वत: ही इतिहास बन जाती है। इसका लोग अपने हिसाब से ही अंदाज लगाते हैं और आकलन करते हैं। उनके समय में परिस्थितों के बदलने में नजरिया अहम भूमिका निभाता है। इसलिए हर बार इतिहास से खिलावाड़ की कोशिश बंद होना चाहिए।
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