Saturday, 25 July 2015

याकूब के बाद कोई मदद को नहीं आएगा


राजेश रावत
देश में आतंकी को फांसी होनी चाहिए। इस विषय पर किसी की कोई दो राय नहीं हो सकती है। याकूब के पक्ष में कोई भी नहीं है। पर उस याकूब के पक्ष में देश के अनेक लोग हैं, जिसने कानून की मदद की। जिससे पूरी साजिश का पर्दाफाश हो पाया। साजिश की एक -एक कड़ी जुड़ी। उस अमन पसंद आदमी के पक्ष में लोग है। जिसे अपनी गलती का अहसास हुआ। देश वापस लौटा और सरेंडर किया। उसके इस दावे पर शायद ही किसी को शक हो। यह देश की जांच एजेंसियों पर अविश्वास भी नहीं है। पर उनके काम करने के तरीके जरूर सवाल है। अगर कोई अपराधी सुधरना चाहता है और गलती सुधारना चाहता है तो उसे निसंदेह ही एक मौका मिलना चाहिए। उसे किसी तरह की रियायत मिले। यह शायद ही कोई चाहता हो। पर जिसे भी उसके तर्क से जरा सा भी इत्तेफाक है। वह यह जरूर चाहता है कि सूचना देने वाले को सरंक्षण और गलती सुधारने का मौका सबको मिलना चाहिए। अगर संजय दत्त और उनके जैसे अनेक लोगों को मौका मिला है तो फिर याकूब मेमन को एक मौका क्यों नहीं दिया गया। उसे भरोसे में लेकर एक साजिश के तहत फांसी के फंदे तक क्यों पहुंचाया गया। सवाल उन लोगों पर भी जो आज उसकी फांसी पर विवाद खड़ा कर रहे हैं।
क्यों नहीं उस समय उसकी मदद को आगे नहीं आए। इसमें उन तमाम मानवतावादी संगठनों की नीयत पर भी सवाल खड़ा हुआ है। जो  हर कैदी के अधिकार के लिए लड़ते रहे हैं। उन्होंने कभी इस सच्चाई से परदा क्यों नहीं हटाने की कोशिश की।
देश में मी़डिया पर भी सवाल खड़े होते हैं। जो तमाम तरह की खुफिया रिपोर्ट लीक करती रहती है। समय -समय पर घोटाले उजागर करती हैं परन्तु एक व्यक्ति के खिलाफ रची जा रही साजिश को उजागर नहीं कर पाए।
आज हाय  -तौबा केवल टीआरपी के लिए मचा रहे हैं। सवाल यह भी है कि यह तो एक ऐसा मामला है जो सामने आ गया है। कई ऐसे कई मामले हैं जिनके आरोपी बिना कोई विवाद के फांसी पर चढ़ गए। अभियोजन का काम ही है आरोपी को मुजरिम सिद्ध करना। क्या ऐसी व्यवस्था नहीं बनाई जानी चाहिए। ताकि अगर कोई आरोपी अपने गुनाह को मानकर गलती सुधारने की कोशिश करता है तो उसे एक मौका दिया जाए। उसकी सजा में नरमी बरती जाए। छूट नहीं दी जाए। फांसी देकर हम मदद के रास्तों को बंद कर रहे हैं । वैसे भी दिल्ली हो देश तमाम मामले में कोई मदद को आगे नहीं आता है। दिल्ली में 36 चाकू खाकर दम तोड़ने वाली मीनाक्षी का मामला सबके सामने है। कानून के पचड़े में पड़ने के डर से ही तो कोई उसे बचाने नहीं आया था। अब समय आ गया है कि मददगार के संरक्षण दिया जाए। वर्ना समाज की चौपट होता व्यवस्था पूरी तरह से ही ध्वस्त हो जाएगी।
लोग इसी तरह से फांसी पर चढते रहेंगे और हम मीनाक्षी जैसी केस पर केवल आंसू बहाते रहेंगे। इस दर्द का अहसास हमें तब होगा, जब हमारा कोई इस तरह के हादसे का शिकार होगा। तब तक इतनी देर हो चुकी होगी, तमाम प्रयास के बाद भी लोग सामने नहीं आएंगे।

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