राजेश रावत (22 जुलाई 2015)
राज्यपाल के दुरुपयोग के मामले कांग्रेस सरकार में सबसे ज्यादा चर्चित रहे हैं। लेकिन उन सभी को पीछे छोड़ते हुए भाजपा ने सत्ता में आते ही राज्यपालों के दुरुपयोग के नए कीर्तिमान बनाने शुरू कर दिए हैं। पहले कांग्रेस द्वारा नियुक्त राज्यपालों को एक एक करके हटाने की मुहीम शुरू की थी। लेकिन बीच में मामला उलझ गया। जब एक राज्यपाल इस्तीफा नहीं देने को लेकर अड़ गए थे। यहां तक कि वे कोर्ट भी चले गए थे।
अभी यह विवाद ठंड़ा भी नहीं पड़ा था कि अब नया विवाद दिल्ली में शुरू हो गया। यह इतना बढ़ गया है कि भाजपा की तमाम अच्छी नीतियों पर भारी पढ़ने लगा है। देश के लोग कांग्रेस के राज्यपाल के दुरुपयोग की कहानी जानते हैं। इसलिए भाजपा राज्यपाल को लेकर कितनी भी सफाई क्यों न दे। लोगों के गले नहीं उतरेगी। क्योंकि यह अटल सत्य है कि राज्यपाल केंद्र सरकार की कठपुतली है। केंद्र जब तब इनके माध्यम से अपने हित साधने की कोशिश करती रहती है। दिल्ली के राज्यपाल नजीब जंग की नीयत साफ भी हो सकती है। परन्तु लोगों के बीच उनकी छबि लगातार बिगड़ती ही जा रही है। प्रधानमंत्री मोदी की इस मामले में चुप्पी उनका उतना ही ज्यादा नुकसान कर रही है। एक समय गुजरात की राज्यपाल से मुख्यमंत्री मोदी का विवाद चला था। परन्तु मोदी सरकार को राज्यपाल ने एक गरिमा के साथ काम करने दिया था। शायद यह बात मोदी भूल गए हैं। उनके रोजमर्रा के काम में तब राज्यपाल कमला बेनीवाल ने इतना दखल नहीं दिया है। पर नजीब जंग हर दिन के कामकाज में जबरदस्त दखलअंदाजी कर रहे हैं।
इसका नया उदाहरण दिल्ली महिला आयोग की नई अध्यक्ष स्वाति मालीवाल को ऑफिस नहीं आने के निर्देश देना है। हालांकि बाद में राज्यपाल कार्यालय ने इस विवाद के बढने के बाद सफाई भी जारी कर दी। लेकिन तय है कि दिल्ली के राज्यपाल नजीब जंग की अजीब जंग चुनी हुई सरकार को लेकर चल रही है। यह उनके पद की मजबूरी भी हो सकती है। क्योंकि जब तक वे भाजपा या मोदी के कहने पर केजरीवाल सरकार के खिलाफ काम करते रहेंगे। तब तक पद पर बने रहेंगे। जैसे ही वे निष्पक्ष होने की कोशिश करेंगे। मोदी सरकार उन्हें अलविदा कर देगी। हालांकि यह भी तय है कि एक समय के बाद मोदी सरकार एलजी नजीब जंग को दर किनार ही कर देंगे।
भाजपा नेता भी नजीब जंग की रोज -रोज की किट किट को भाजपा के लिए नुकसान दायक मानने लगे हैं। उन्हें लगता है कि इससे मीडिया में केजरीवाल को अनावश्यक महत्व मिल रहा है और उनकी टीआरपी लगातार बढ़ रही है। जबकि यह केजरीवाल के स्थान पर यह मोदी को मीडिया में स्थान मिलना था। दिल्ली समेत देश के अन्य हिस्सों में भी केजरीवाल के समर्थन में लोग बात करने लगे है।
अन्ना की कमी को केजरीवाल ने पूरा किया : यूपीए सरकार ने अन्ना की मांग को नजर अंदाज किया था। उनके आंदोलन को तोड़ने के लिए तमाम हथकंड़े अपनाए थे। उसी की उपज से केजरीवाल सत्ता के सिंहासन तक पहुंचे। अगर यूपीए सरकार मामले को सही तरीके से निपटाती तो आज केजरीवाल का कोई वजूद नहीं होता। अब मोदी सरकार के समय में केजरीवाल परेशान हो रहे हैं। मोदी को भी यूपीए सरकार ने परेशान किया था और वो प्रधानमंत्री बन गए। लोग मोदी को रोकने के लिए केजरीवाल की तरफ देखने लगे हैं। अगर इसी तरह से पांच साल तक चलता रहा तो तय है कि केजरीवाल मोदी के सबसे बड़े राजनीतिक विकल्प बनकर उभरेंगे। केजरीवाल भी इस बात को जानते हैं और उनका सारा ध्यान मोदी को ही टारगेट करने का है। अब कौन कितना सफल हो पाता है यह आने वाले समय में साफ होगा।
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