Friday 17 January 2014

आप को सलाह देने से पहले वास्तविकता जानें


-दिग्विजय सिंह की सलाह पर प्रतिक्रिया 


कांग्रेस महासचिव दिग्विजय सिंह ने हाल में दिल्ली की आम आदमी पार्टी सरकार को इस तरह का सिस्टम बनाने की सलाह दी है जिससे आम लोगों की समस्या आसानी से सुलझ सके। दिग्विजय सिंह ने मध्यप्रदेश में अपने कार्यकाल में जो सिस्टम बनाया था। वह समय से पहले शुरू हो गया था। जबकि राज्य के लोग इसके लिए तैयार ही नहीं थे। इसका मतलब यह नहीं कि उन्हें समस्याएं नहीं थी। या वे उनका निराकरण नहीं चाहते थे। बल्कि वे सहज और सरल तरीके से समस्याओं का निराकरण चाहते थे। 


जो बहुत ही छोटी हुआ करती थी। कई तो इतनी छोटी होती थी कि पटवारी और तहसील स्तर पर ही हल हो सकती थी। आपने समस्या निराकरण के लिए एक बड़ा भारी भरकम सिस्टम खड़ा कर दिया। जिसका लाभ तो उन्हें मिलना चाहिए था। लेकिन लाभ ले उड़े आपके दरबारी। 
  
आप मध्यप्रदेश में जिनसे मिलते थे वे बड़े नेता होते थे। वे आपके आसपास घेरा बनाकर रहते थे। उनके सामने लोग अपनी शिकायत ही नहीं कर पाते थे। आप समझते रहे लोगों की समस्या हल हो रही है। जबकि वास्तविकता इसके उलट थी। यहीं समस्या दिल्ली में शीला दीक्षित  की सरकार के साथ हुई। लोग आपके दरबारियों डर से अपनी समस्या के विषय में बोल ही नहीं पाते थे।  क्योंकि आप तो एक -दो के लिए ही शहरों या कस्बों में आते थे। उसके बाद तो लोगों का पाला इन्हीं नेताओं से  पड़ता था। 

अधिकारी और कर्मचारी भी इनसे बचना चाहते थे। सब आपको बताते रहे कि लोगों की समस्या के लिए आपका सिस्टम काम कर रहा है। आप उनकी बातों पर भरोसा करते रहे । कभी आपने जनाने की कोशिश ही नहीं की कि वास्तव में प्रदेश में चल क्या रहा है। 


अगर कभी आवाज बुलंद हुई तो आपके दरबारियों ने उसे विपक्ष की आवाज बताकर आपको गुमराह किया। आप भी भोले थे। और गुमराह भी हो गए। कई अच्छे काम इन घाघ नेताओं ने अटका दिए। यहां तक की उनके छोटे और जरूरी काम भी नहीं हो पाए। लोग नाराज थे। चुनाव में आपको बाहर का रास्ता दिखा दिया।


१० से ज्यादा  साल के बाद भी आपके दरबारी नहीं बदले हैं। लोग इन लोगों के बुरे बर्ताव और काम अटकाने की चालाकियों को लोग नहीं भूले हैं। हर घर में आपके कार्यकाल के दौरान आई परेशानियों को लोग चर्चा के दौरान बताते हैं। यानि आप इस भुलावे में रहे कि लोग आपके  पुराने कार्यकाल को भूल गए हैं।

आपके दरबारी उस समय को नहीं भूलने ही नहीं देते हैं। इस बार यही समस्या शिवराज सरकार में भी थी। लोग विकल्प चाहते थे। परन्तु उनके सामने बुरे और बहुत बुरे के बीच में चयन का सवाल खड़ा हो गया था। उन्हें कम बुरे को चुन लिया। दिल्ली में भी यही हुआ। केजरीवाल ने विकल्प दिया और लोगों ने भाजपा को छो़ड़कर उसे चुन लिया।

आप वास्तव में काम करना चाहते हैं। या फिर से मध्यप्रदेश की सत्ता में आना चाहते हैं या अपने बेटे को गद्दी पर बैठा देखना चाहते हैं तो सबसे पहले पुराने दरबारियों को अलविदा कहिए।  माधवराव सिंधिया ने भी यही गलती दोहराई। उन्हें लोगों ने समर्थन देने का मन बनाया था। उनके पुराने दरबारियों को देखकर कदम पीछे खींच लिए। 

सबको पता था कि महराज से मिलना भी उतना ही कठिन है। जितना दिग्गी राजा से।  आपको अपना नजरिया बदलने की जरुरत है। आप या किसी अन्य को  सलाह देने से पहले अपने नजरिए को बदलें। 

-राजेश रावत 
 १७जुलाई २०१४ 

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