Saturday 28 March 2015

राजनीति सत्ता के आसन पर रंग दिखाती है

राजनीति महा ठगनी होती है। यह सत्ता के आसन पर चढ़ते ही सभी भेद और अहसान भूूल जाती है। इसी के भय से आम आदमी हमेशा राजनीति से दूरी बनाए रखता है। लेकिन आम आदमी पार्टी के आने के बाद इस मिथक के टूटने का क्रम शुरू हुआ था। लेकिन 28 मार्च 2015 को यह मिथक दरक गया।जिसकी भरपाई करने में बरसों लगेंगे। आम आदमी अब देश में किस तरह से अलग राजनीति का दावा करेगी। यह उसे समझ नहीं आ रहा है। क्या वह इस तरह के व्यवहार के लिए इसका समर्थन कर रहा था। कतई नहीं। तो साफ है कि जो लोग इस पार्टी से जुड़ रहे थे। वे अब कन्नी काटने लगेंगे। इसमें दोनों गुटों की जबरदस्त कमजोरी सामने आई है।
 इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता है कि योगेंद्र यादव और प्रशांत भूषण किसी गुप्त एजेंटे पर काम करते हुए पूरी पार्टी को रसातल में ले जाने में जुटी हुई है। अगर एेसा नहीं है तो उन्हें कुछ दिनों तक इंतजार क्यों नहीं किया। अरविंद केजरीवाल को उनकी मनमानी करने का अवसर देते जिससे वे खुद ही लोगों के सामने एक्सपोज हो जाते। अगर वे पाक साफ होते तो चुप रहते। आम आदमी पार्टी को सड़क पर तमाशा बनने से रोकते। लेकिन उन्होंने या प्रशांत भूषण ने ऐसा नहीं किया। इससे उन पर उठे संदेह से वे बरी नहीं हो सकते हैं। कई ऐसे उदाहरण है जिससे  दोनों के पार्टी विरोधी काम की पुष्टि होती है।  हालांकि आप को इस स्टेज में लाने में उनकी भूमिका को कम नहीं आंका जा सकता है। वे हर संकट में अरविंद के साथ खड़े रहे हैं। अब ऐसा क्या हो गया कि वे दरकिनार किए जा रहे हैं।
अरविंद केजरीवाल की गलती कम नहीं है। उन्हें बडप्पन दिखाकर इन लोगों को गलतियों को माफ करना था। इन्हें किनारे लगाना था तो बड़ी सफाई से कर सकते थे। लेकिन वे एक अपरिपक्व नेता की तरह व्यवहार करके खुद ही नए विवादों में उलझ गए हैं।

इस दिन को आम आदमी पार्टी के इतिहास का ऐसा दिन है। जिसे याद करके आप का हर कार्यकर्ता खुद शर्मिंदा महसूस करेगा। इसलिए नहीं कि महत्वकांक्षा के पहाड पर खड़े उसके नेता आपसे से छुटभैय्या नेताओं की तरह से लड़ रहे थे। बल्कि इस बात से शर्मसार होगा कि नेता आम आदमी के लिए नहीं लड़ रहे थे। बल्कि वे आपस में एक दूसरे के खिलाफ आरोप लगाकर लड़ रहे थे। इससे आहत लोगों के पास इस बात का कोई जवाब नहीं कि जिस पार्टी के साथ वे खड़े हुए थे। आज वह अन्य राजनैतिक दलों के समान ही व्यवहार कर रही थी। उसके बड़े से बड़े नेता भी आम राजनेताओं की तरह से छोटी छोटी बातों पर लड़ रहे थे। इससे उनका भरोसा टूटा है।

देश के लोगों ने भाजपा और कांग्रेस के कार्यकर्ताओं लड़ते हुए देखा है। अपने समर्थकों को दूसरे नेता को नीचा दिखाने के लिए मंच पर कपड़े तक फाड़ने के लिए उकसाते हुए देखा है। कांग्रेस में सीता राम केसरी को किस तरह से बाहर निकाला गया था। वह घटना कांग्रेस से जुड़े लोगों को याद होगी।
अभी हाल ही में भाजपा से लालकृष्ण आडवाणी की किस तरह से छुट्‌टी हुई है। वह घटनाक्रम सभी को याद होगा। भाजपा को जिस नेता ने इस स्तर तक पहुंचाया है। उन्हें बड़े बेआबरू करके बाहर का रास्ता दिखाया गया था।

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