Sunday 12 April 2015

गलती करने पर माफी मांगना और आपको बड़ा बनाता

राजेश रावत
भोपाल ।गलती करना या होना जाना स्वाभाविक है। परन्तु गलती करने के बाद उसे सुधारते हुए माफी मांगना सबके बूते की बात नहीं है। यह केवल वह ही कर सकता है, जिसका दिल बढ़ा होता है। या जो आगे बढ़ने के लिए पीछे की छोटी बातों को भूलने के लिए तैयार रहता है। आज के युवाओं में गलती को सुधारने की ललक ज्यादा है। शायद यही कारण है कि वे नए नए कीर्तिमान रच भी रहे हैं। परन्तु इसके उलट सयाने लोग आज भी अपनी गलती को मानने को तैयार नहीं होते हैं। या उनकी पोल खुलने से बौखलाकर उस पर पर्दा डालने की कोशिश करने लगते हैं। जबकि वे जानते हैं कि उनके ऐसा करने से भी कुछ नहीं होने वाला है।

गलती मान लेने से उनका कद ही बढ़ेगा। क्योंकि सभी जानते हैं कि गलती किसी उम्र की मोहताज नहीं होती है। इसी तरह से माफी का अवसर हर किसी को नहीं मिलता है। समय पर अगर माफी मांग ली जाए तो उसका असर लंबे समय तक रहता है। दिल से एक बहुत बढ़ा बोझ भी उतर जाता है। आपके विषय में लोगों की सोच बदल जाती है। दायरा बढ़ने से लोग आपके आने से किसी विवाद की वजह से हिचक रहे होते हैं वे फिर उसी रवानगी के साथ आने लगते हैं जैसे कुछ हुआ ही नहीं।

लेकिन आप गलती के बाद भी अगर उसे सुधारने की जगह अड़ जाते हैं तो आप खुद अवरोध बन जाते हैं। अपने और उन लोगों के बीच जो आपके काम और अच्छाईयों के समर्थक होते हैं। वे आपको सही सलाह भी देने से बचने लगते हैं। उन्हें लगता है कि आप कहीं उन्हें भी बेइज्जत न करें। न भी करें तो उनकी राय को उतनी तवज्जों नहीं देंगे। जितनी वह अपेक्षा करता है। इसके दो उदाहरण है। सऊदी में एक युवक ने कचरा बीनने वाली लड़की को देखा। वह कचरा बीन रही थी। लेकिन उसने सऊदी के मशहूर फुटबाल क्लब अल इत्तिहाद की जर्सी पहन रखी थी। बच्ची को देखने वाले उस युवा को शरारत सूझी। उसने अपने मोबाइल से एक सेल्फी लड़की के साथ खींच ली। उसे सोशल मीडिया स्नैप चैट पर पोस्ट कर दिया। कैप्शन लिखा, देखो अल इत्तिहाद कहां पड़ा है।
जैसे ही फोटो पोस्ट हुई लोगों में नाराजगी बढ़ गई। लोगों को लगा कि युवक बच्ची की गरीबी का मजाक उड़ा रहा है। फोटो को वायरल होने लगी पर आलोचना के साथ। लोग युवक पर नाराजगी जताने लगे। स्नेप चैट ने विवाद बढ़ते ही फोटो हटाई। पर फोटो तो वायरल हो चुकी थी। अब युवक को लगा कि उससे गलती हो गई। वह तो फुटबाल क्लब का मजाक उड़ाना चाहता है। उसने लोगों की आलोचन के बाद बच्ची से माफी मांगी और उसे उपहार में गिफ्ट भी दिए। लोगों ने बच्ची की मदद को 75 लाख रुपए दे दिए। इस सबमें युवक ने सबक दिया कि गलती होने पर माफी मांगने से कोई छोटा नहीं हो जाता है।

अब दूसरा उदाहरण देखते हैं। जदयू नेता शरद यादव ने पद्म अवॉर्ड गरीबों को नहीं देने पर सवाल उठाया। उनका सवाल सही भी हो सकता था। परन्तु गलत तरीके से उठाया। मंशा भी गलत ही थी। उनकी सिफारिश को केंद्र सरकार ने दरकिनार कर दिया था। इससे वे आहत थे। इसलिए पद्म अवॉर्ड देने पर सवाल खड़ा कर दिया। अब केंद्र सरकार ने इसका खुलासा कर दिया। केंद्र सरकार को 1878 सिफारिश मिली थी। उसमें से उसने 127 लोगों को चुना। जिन लोगों को पद्म अवॉर्ड मिले हैं। उनमें कोई ऐसा नाम नहीं है। जिसे गलत तरीके से पद्म अवॉर्ड से नवाजा गया हो। मतलब जिन लोगों को पुरस्कार मिले हैं वे योग्य थे। गरीब और अमीर का सवाल ही नहीं था। अब सबकुछ सामने आ गया। तब भी शरद यादव ने अपनी गलती नहीं मानी।

अब कह रहे हैं कि पद्म अवॉर्ड की प्रक्रिया पारदर्शी नहीं है। मतलब वे माफी मांगने को तैयार नहीं है। बस यहीं से उनकी बात कमजोर हो गई। अव्वल तो सिफारिश नहीं करना थी। कर दी थी तो उसे तवज्जों नहीं मिलने की सही मंच पर बात को उठाना था। सार्वजनिक रूप से पद्म अवॉर्ड की आलोचना करने से बचना चाहिए थे। गरीब और दूसरे वर्गों के नाम पर पद्म अवॉर्ड की राजनीति से अच्छे रचनाकारों का अहित ही होगा। पहले से ही अच्छे साहित्यकारों के बीच इस बहस ने बहुत नुकसान किया है। अब जो इसे मुद्दा बनाना चाहते हैं उनके लिए शरद यादव ने फिर मसाला दे दिया है।

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