Thursday 2 January 2014

सबको कर दिया अपना कायल 

केजरीवाल के भाषण पर प्रतिक्रिया

नए साल का दूसरा दिन था आज। यानि दो जनवरी २०१४। आम आदमी की सरकार की परीक्षा की घडी। सबको इंतजार था आज के दिन का। आम आदमी को सबसे ज्यादा। क्यों। उसकी अपनी सरकार के भविष्य का सवाल था। चिंता थी। राजनीतिक दलों को भी। उन्हें  दिल्ली विधानसभा से मिलने वाले राजनीतिक संदेश का इंतजार था। बड़े घरानों को भी। इंजीनियर को भी और डॉक्टर को भी। यानि देश की हर निगाह थी दिल्ली विधानसभा की कार्रवाई पर।

 शायद पहली बार एेसा नजारा। जहां देश का हर व्यक्ति देश की एक विधानसभा की कार्रवाई को आतुरता से न सिर्फ देख रहा था। बल्कि उससे उठने वाली सर्द और गर्म हवाओं से खुद को प्रभावित होते महसूस कर रहा था। इतनी उत्सुकता और उमंग थी कि लगभग लोग काम बंद करके केवल चैनल ही देख रहे थे। मौका ही था एेसा । देश में नई राजनीतिक धारा की दशा और दिशा तय होने का समय जो था।
विधानसभा में  करने को कांग्रेस नेताओं के पास कुछ था ही नहीं तो वे सर्मथन के अलावा कुछ नहीं कर सकते थे। पिछले दिनों के तमाम विरोध प्रर्दशनों के बाद भी उसने समय पर सही दिशा पकडी।

लेकिन भाजपा यहां फिर से गच्चा खा गई। वह आप को समर्थन नहीं करना उसकी राजनीतिक मजबूरी हो सकती है। पर वह दिल्ली में एक रिस्क लेकर देख सकती थी। न समर्थन दे तो भी नराकात्मक भाव को छोड़कर लोगों को संशय में खड़ा करके अपनी रणनीति आगे बढ़ा सकती है। पर उसने वह भी नहीं किया। हर्षवर्धन आम आदमी होकर भी गलत राह पर चले गए।

 एेसा लगता है कि भाजपा के नेता केंद्र में अपनी सरकार बनने से इतने आश्वस्त हैं कि वे कुछ देखने,सुनने या समझने  को तैयार ही नहीं है। वह यह भी समझने को तैयार नहीं है कि आप के साथ कोई दूसरे देश से आए लोग नहीं है। बल्कि वे लोग हैं, जो उन्हें या कांग्रेस को ही वोट देते रहे हैं। भाजपा के वादों पर उनका एतबार कम हो चुका है और कांग्रेस पर भरोसा नहीं है।  
अरविंद केजरीवाल ने विधानसभा में बोलना शुरू किया। लोग सुनने लगे। विधानसभा में भी सन्नाटा था। देश में भी अद्भुत खोमाशी। केवल टीवी चैनल पर हर घर में केजरीवाल की आवाज गूंज रही थी। लोगों को अपनी ही आवाज दिल्ली से गूंजती सुनाई दे रही थी। केजरीवाल बोलते जा रहे थे और लोग समझते जा रहे थे। समर्थन करते जा रहे थे।

उन्हें लग रहा था अरे यह क्या। यह तो हमारी ही तरह से हमारी बात ही तो बोल रहा है। हम भी तो इसी तरह से बोलते हैं। न गुस्से में न तीखे तेवर में। न मिलावट के साथ । न ही विशेषज्ञों की तरह। एकदम आम । बस सीधे और सरल शब्दों में। जिसमें न  किसी की आलोचन न नुक्ताचीनी। बस अपने और अपने परिवार की चिंता की बात।
आम आदमी घर में था। परिवार के साथ सुन रहा था। अपनी ही चिंता को अपने ही नेता के मुंह से। उसे लगने लगा यहीं तो बात तो सारे राजनेताओं को मैं समझाने की कोशिश कर रहा था। 

चलो अच्छा हुआ केजरीवाल ने समझा दिया। भाषण खत्म हुआ। सबने अपने ही घरों में तालियां बजाई और मुरीद हो गए केजरीवाल के। देश में हर घर से।  हर दिल से आम आदमी की आवाज ही निकली। इतना समर्थन तो कभी मोदी को भी नहीं मिल सकेगा। यह तय है।
केजरीवाल के भाषण का मतलब सबने अपनी -अपनी क्षमता से ही लगाया। पर एक बात पर सब एकमत हो गए हैं। केजरीवाल आम आदमी है। सही में हमारा आदमी। हमारे जैसा। हमारी ही चिंता है उसे। एेसा भरोसा जिसके लिए सारे देश की राजनीतिक पाट्रियां तो न जाने क्या क्या स्वांग रचाती है।  पर अरविंद केजरीवाल कुछ मिनटों के भाषण में लूट ले गए। 

इस देश में कोई भी राजनेता एेसा नहीं है। जो जिसमें लोग अपने आप को देखते हों। केजरीवाल ही एकमात्र एेसे आदमी हैं जिसे आम लोगों बिना जाति-समाज या धर्म के अपना समझने लगे। यही तो नजर और नजरिया शिखर पर पहुंचने के बाद आम आदमी नेताओं से चाहता है। पर नेता इसे समझना ही नहीं चाहते हैं। बस जीतते ही बदल जाते हैं पावर में। जहां आम आदमी की पहुंच हो जाती है उससे दूर । घिर जाता है वह चाटुकारों में।
अब केजरीवाल नया राजनीतिक ट्रेंड सेट कर दिया है। उस पर खरा उतरना सभी नेताओँ की मजबूरी हो गई है। नहीं उतरे तो खारिज। आउट। या गैट आउट । 
राजेश रावत
२ जनवरी २०१४ भोपाल मध्यप्रदेश 

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